Tuesday 22 May 2018

पहली किताब पर अंतिम पोस्ट


तात्कालिक वैचारिक जुगाली से कहानियों तक और ब्लॉग से शुरू हुआ सफर किताब तक पहुँचा। ये सफर कहाँ ले जाएगा इसकी कोई कल्पना नहीं है अब तक....
सच मानें जीवन में कभी अपनी किताब का सपना देखने की हिमाकत भी नहीं की थी। ज्यादा-से-ज्यादा रिसर्च पेपर तक ही कल्पना जा पाई थी। यूनिवर्सिटी में जब साहित्य पढ़ने की बात आई थी, तब भी साहित्य साध पाने को लेकर संकोच बना रहा... तो साहित्य की विद्यार्थी होते-होते रह गई।
अपने जीवन के अनुभवों से जाना है कि यदि आप जीवन से ज्यादा संघर्ष न करें तो वो आपको उस जगह ले जाता है जहाँ आप अपने बरअक्स सबसे अच्छे ठहरते हैं। तो कई बार हम वो हो जाते हैं, जिसके बारे में कल्पना तक नहीं की होती है।
ब्लॉग में हर दिन की घटनाओं पर पैदा होने वाली प्रतिक्रिया से ऊबकर कुछ और लिखने लगी तो साथियों ने कहा ये कहानी है... पत्रिका को भेजी बहुत लंबा इंतजार किया और फिर भूल गई। एक दिन फोन आया - 'आपकी जो कहानी हमारे पास है वो कहीं और छपी तो नहीं?'
पूछना पड़ा - 'कौन-सी?'
फोन करने वाला आश्चर्य से पूछता है - 'आपको नहीं पता?'
झल्लाकर कहती हूँ - 'न जाने कब भेजी थी, इतने दिनों में क्या याद रहेगा?'
कहानी का नाम बताएँ उससे पहले ही कह देती हूँ - 'नहीं....' क्योंकि कहीं और कहानी भेजी ही नहीं थी।
छप जाती है। पाठकों की प्रतिक्रिया मिलती है। कभी सोचा नहीं किसी लेखक-आलोचक ने पढ़ी या न पढ़ी... ऐसे ही मगन रही। लिखने और छपने का क्रम चलता रहा।

आज किताब हाथ में हैं। मैं अपनी तरफ से सब कह चुकी हूँ।
किताब के बारे में यह मेरी आखिरी पोस्ट है। आपको कहानियाँ पढ़कर बताना है।
मेरा काम खत्म हुआ... आपका शुरू
‘तुम जो बहती नदी हो’ से प्रतिक्रिया देंगे तो उत्साह और सुधार की गुंजाइश, दोनों ही बनेगी।
- अमिता नीरव 
किताब- तुम जो बहती नदी हो
प्रकाशक- लोकोदय प्रकाशन
कवर- कुँवर रवींद्र
कहानियाँ- 15
कीमत- 200 रु.

2 comments:

  1. बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं अमिता नीरव । बधाई ।

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