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Monday, 27 October 2025

छन्दमुक्त साझा संकलन

 मित्रवर,

साझा काव्य संकलन में रचना प्रकाशित करवाने के लिए विचार प्रस्तुत हैं। 10 कवियों के इस सहयोग आधारित साझा संकलन में प्रत्येक कवि को प्रकाशनार्थ 11 पेज मिलेगा। पहला पेज रचनाकार के फोटो तथा परिचय के लिए प्रयोग किया जाएगा रचनाएँ केवल छन्दमुक्त काव्य विधा पर आधारित होंगी।

1.  रचनाएँ केवल छन्दमुक्त काव्य विधा पर आधारित होंगी।    

2.  आवरण पृष्ठ पेपरबैक बाइन्ड, मल्टी कलर में तैयार किया जाएगा। जिस पर मेट फिनिश लेमिनेशन होगा। आवरण पृष्ठ के लिए 300 जी.सी.एम. आर्ट पेपर का प्रयोग किया जाएगा।  

3. भीतरी पृष्ठों के लिए 70 जी.सी.एम. ऑफ वाइट पेपर का प्रयोग किया जाएगा।

4.  पहले संस्करण में पुस्तक की 500 प्रतियाँ प्रकाशित की जाएँगी।

5.  पुस्तक की भूमिका प्रकाशक द्वारा विधा विशेष के महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों द्वारा लिखवाई जाएगी।

6.  प्रकाशक द्वारा पुस्तकें समीक्षकों/ पत्रिकाओं/ समाचार-पत्रों को समीक्षार्थ भेजी जाएँगी।

7.  प्रतिष्ठित समीक्षकों से समीक्षा लिखवाकर उनका प्रकाशन पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, इंटरनेट की पत्रिकाओं और  इंटरनेट के साहित्यिक मंचों पर करवाया जाएगा। पुस्तक आनलाइन खरीदने के लिए प्रकाशन की वेब साईट, प्रकाशक के आनलाइन स्टोर तथा  अन्य वेब स्टोर पर उपलब्ध होगी।

8.  पुस्तक का प्रचार-प्रसार इंटरनेट तथा पत्रिकाओं के माध्यम से करवाया जाएगा।   

9.  लेखक को सहयोग राशि के रूप में 1000/- रुपया देना होगा। लेखक को पुस्तक की 10 प्रतियाँ दी जाएँगी।

10.  इच्छुक रचनाकार अपनी रचनाओं की वर्ड फाइल अपने परिचय, फोटो तथा सहयोग राशि की रसीद के साथ  \      31 अक्टूबर 2025 तक ई-मेल lokodayprakashan@gmail.com पर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें। 

 11.  रचनाकार सहयोग राशि इस खाते में प्रेषित करें-

LOKODAY PRAKASHAN PVT LTD

A/C NO- 696105600244

IFSC- ICIC0006961

BANK- ICICI BANK

लेखक इन नियम व शर्तों को ध्यानपूर्वक पढ़ लें। पुस्तक प्रकाशन के पूर्व लेखक का इन नियम व शर्तों से सहमत होना आवश्यक है।

Thursday, 31 October 2019

प्री-बुकिंग - राजधानी



प्री-बुकिंग
डाक खर्च मुफ्त
इंसान के होने का पहला दस्तावेज़ केवल कविता ही रही है। कविता में ही इंसान के वजूद में आने की पहली पहचान मिलती है। अगर आप किसी ब्रह्मांड किसी अन्यान्य सृष्टि और उसके सर्जक को मानते हैं तो उसे भी कविता ही पहली बार मूल अस्तित्व और मूल पहचान के साथ धरती पर लेकर आई इसलिए कविता मनुष्यता के होने की पहचान हमेशा बनी रहेगी। जब तक कविता है मनुषता है। चूंकि बिना प्रतिपक्ष के किसी भी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है। इसी लिहाज़ से कविता मनुष्यता के विरुद्ध खड़ी शक्तियों का प्रतिपक्ष हमेशा से और सख्ती से बनी।
यही मूल विचार और प्रतिपक्ष की मजबूत आवाज़ें "राजधानी" कविता संग्रह में देखने सुनने और पढ़ने को मिलेंगी। अगर आप मनुष्यता के पक्ष में कहीं भी खड़े हैं तो जरूर इन कविताओं से होकर गुजरें। कवि को जीवन दृष्टि इन्हीं अपेक्षाओं और संघर्षों से मिलती है। कवि स्वयम प्रतिपक्ष है दुनिया भर में जारी मनुष्यता के खिलाफ असंख्य बूझी अबूझी लड़ाइयों का।
आप राजधानी तक आने के लिए लोकोदय प्रकाशन से सम्पर्क करें। बहुत खुशी होगी।
                                                                                                                 - अनिल पुष्कर
लोकोदय नवलेखन से सम्मानित अनिल पुष्कर के कविता संग्रह 'राजधानी' जयन्ती की प्रति सुरक्षित करने के लिए निम्न खाते में रु 150/- जमा करें। साथ ही Transaction ID के साथ अपना पता पिन कोड व मोबाइल नंबर के साथ 9076633657 पर मैसेज करें।
Lokoday Prakashan Pvt. Ltd.
Current Account
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IFSC- ICIC0006961
Bank- ICICI Bank
Branch- Aliganj, Lucknow

Wednesday, 26 April 2017

लोक का विद्रोही स्वर

जहाँ तक जनपक्षधरता, लोकधर्मिता और सशक्त वैचारिकता का प्रश्न है रमाशंकर विद्रोही आज के दौर का एक महत्वपूर्ण नाम है. उनका सम्पूर्ण जीवन उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है.
लोकोदय प्रकाशन की ‘लोकोदय आलोचना श्रंखला’ के तहत रमाशंकर ‘विद्रोही’ पर केन्द्रित एक पुस्तक प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया है. इस पुस्तक का नाम ‘लोक का विद्रोही स्वर’ प्रस्तावित है. इस पुस्तक में उनके व्यक्तित्व, कृतित्व से सम्बंधित आलेख तथा संस्मरणों को सम्मिलित किया जाएगा.
इच्छुक रचनाकार मंगल फॉण्ट में टाइप किए हुए अपने आलेख तथा संस्मरण 15 मई तक प्रकाशन की ई-मेल पर भेज सकते हैं-
lokodayprakashan@gmail.com

त्रिलोचन अंक

त्रिलोचन अंक
लोकोदय पत्रिका का आगामी अंक त्रिलोचन पर केंद्रित होगा। इस अंक हेतु अपने आलेख, संस्मरण, समीक्षा आदि पत्रिका के ई मेल lokodaymagazine@gmail.com पर दिनांक 10- 5- 2017 तक भेजे जा सकते हैं।
इस अंक का सम्पादन अजित प्रियदर्शी करेंगे।
Top of Form


कविता आज

कविता आज
लोकधर्मी साहित्यिक परम्परा से समकाल को जोड़ना आज के समय की जरूरत है इसलिए लोकोदय प्रकाशन द्वारा 'लोकोदय साहित्य श्रृंखला' प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया है। इसके अन्तर्गत लोकधर्मी कविता, गीत-नवगीत, कहानी, लोक कला इत्यादि पर आधारित संकलन प्रकाशित किए जाएँगे। इस श्रृंखला का प्रारम्भ कविताओं के साझा संकलन के रूप में किया जा रहा है। 
लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलनों की इस श्रृंखला का नाम 'कविता आज' होगा। इसके हर खण्ड में 21 महत्वपूर्ण लोकधर्मी कवियों की पाँच-पाँच कविताएँ, उनके परिचय तथा आलोचकीय टीप के साथ सम्मिलित होंगी।
'कविता आज-1' में सम्मिलित होने के इच्छुक कवि अपनी 20 रचनाएँ, परिचय व फोटो के साथ दिनांक 30-04-2017 तक प्रकाशन की ई-मेल पर भेजना सुनिश्चित करें- lokodayprakashan@gmail.com

लोकोदय आलोचना श्रंखला

पूँजी और सत्ता का खेल अब हिन्दी साहित्य में जोरों पर है। साहित्य जगत पर बाज़ार का प्रभाव अब स्पष्ट नज़र आता है। मठों और पीठों के संचालक, बड़े अफसर, पूँजी के बल पर साहित्य को किटी पार्टी में बदलने के इच्छुकपैकेजिंग और मार्केटिंग में माहिर दोयम दर्ज़े के रचनाकार पूरे साहित्यिक परिदृश्य पर काबिज होने के प्रयास में लगातार लगे रहते हैं। ऐसे रचनाकारों द्वारा खुद की खातिर स्पेस क्रिएट करने के लिए चुपचाप साहित्य कर्म में संलग्न लोकधर्मी साहित्यकारों को लगातार नज़रअंदाज़ करने, उनको हाशिए पर धकेलने की कोशिश की जाती रही है
हिन्दी में बहुत से कवि हैं जिनके लेखन पर मुकम्मल चर्चा नहीं की गयी हैऐसे बहुत से कवि हैं जिन्होंने वैचारिक पक्षधरता को बनाए रखते हुए लोक की अवस्थितियों व संघर्षों का यथार्थ खाका खींचा तथा सत्ता और व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिरोध की भंगिमा अख्तियार की लेकिन उनके रचनाकर्म पर समुचित चर्चा नहीं हो सकी लोकोदय प्रकाशन ने ऐसे कवियों पर आलोचनात्मक  श्रंखला प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। इस श्रंखला का नाम होगा लोकोदय आलोचना श्रंखला इस श्रंखला के प्रथम कवि के रूप में  वरिष्ठ कवि तथा पत्रकार सुधीर सक्सेना के व्यक्तित्व, कृतित्व व काव्य रचना प्रक्रिया पर एक संपादित पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा किताब का संपादन किया जाएगा। इस पुस्तक का सम्पादन प्रद्युम्न कुमार सिंह और उमाशंकर सिंह परमार करेंगे

इस पुस्तक के लिए आलेख आमन्त्रित हैं। इच्छुक लेखक वर्ड फाइल के रूप में कृतिदेव या यूनिकोड फॉण्ट में अपने आलेख परिचय तथा नवीनतम फोटो के साथ इस ई-मेल पर ३० मई २०१६ तक भेज सकते हैं

आलेख भेजते समय यह उल्लेख अवश्य करें कि आलेख सुधीर सक्सेना पर केन्द्रित पुस्तक के लिए भेजा जा रहा है    

लोकोदय पत्रिका - जुलाई अंक

लोकोदय पत्रिका का जुलाई अंक हिंदी साहित्य में शैक्षिक मुद्देविषय पर केन्द्रित किया जा रहा है इस अंक में हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं की ऐसी रचनाओं का प्रकाशन किया जाएगा, जिनमें बालमन, स्कूल, शिक्षक, कक्षा-शिक्षक प्रक्रिया, पाठ्यचर्या, शिक्षा के उद्देश्य, वर्तमान में शिक्षा के स्वरूप, शिक्षा और शिक्षक की समस्याओं आदि को रेखांकित किया गया हो इस अंक में शिक्षा के विविध पहलुओं से जुडी मौलिक रचनाओं जैसे- कविता, कहानी, उपन्यास अंश, निबंध, संस्मरण, आलेख, डायरी आदि के साथ-साथ उन पर आलोचनात्मक आलेखों और शिक्षा पर केन्द्रित पुस्तकों की समीक्षा का प्रकाशन भी किया जाएगा
इस अंक के माध्यम से इस बात की गहन पड़ताल की जाएगी कि हिंदी साहित्य शैक्षिक मुद्दों को कितना और किस रूप में संबोधित करता है इसके पीछे हमारा उद्देश्य समाज में बालमन और शिक्षा को लेकर एक सही समझ का निर्माण करना है ताकि एक रचनात्मक, संवेदनशील, लोकतान्त्रिक और वैज्ञानिक सोच से लैस समाज की दिशा में आगे बढ़ा जा सके
आपसे अनुरोध है कि इस अंक के लिए अपनी मौलिक और अप्रकाशित रचनाएँ पत्रिका के ई-मेल- lokodaymagazine@gmail.com पर भेजने के साथ-साथ उन रचनाओं से भी हमें अवगत कराने का कष्ट करें जो शिक्षा से जुडी हों हमें आशा है कि आप अपनी रचनाएँ हमें 10 जून 2017 तक अवश्य भेजने का कष्ट करेंगे
इस अंक का सम्पादन महेश पुनेठा करेंगे

गद्य संकलन

प्रिय मित्रों,
लोकोदय प्रकाशन, लखनऊ द्वारा सहयोग आधार पर हिंदी गद्य साहित्य का एक संकलन प्रकाशित किए जाने की योजना है जिसका विवरण निम्न प्रकार है-
1- पुस्तक विधा-विविधानाम से होगी जिसमें देश के चयनित 21 साहित्यकारों द्वारा गद्य साहित्य की विभिन्न विधाओं (जैसे कहानी, लघुकथा, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, संस्मरण, लेख, निबंध, शोध आलेख, व्यंग्य, नाटक, आलोचना, विमर्श, अनुवाद, यात्रा वृतांत, एकांकी, गल्प, साक्षात्कार,पत्र लेखन आदि) में लिखी गई रचनाओं को एक बिलकुल नए कलेवर में प्रस्तुत किया जाएगा।
2-मंगल या यूनिकोड फॉण्ट में टाइप की हुई रचनाएँ केवल ईमेल द्वारा वर्ड फाइल में ही भेजी जा सकती हैं। डाक द्वारा भेजी गई पांडुलिपि पर विचार सम्भव नहीं है। रचना के ऊपर सम्बंधित विधा अवश्य इंगित करें।
3- रचना 2500-3000
4- रचना के साथ लेखक अपना पूरा परिचय भी भेजें जिसमें नाम, पिता व माता का नाम, वर्ष व दिनांक सहित जन्म तिथि, सम्प्रति, पूरा पता, मोबाइल नंबर व ई-मेल का उल्लेख आवश्यक है।
5- प्रत्येक सहयोगी लेखक को सहयोग राशि के तौर पर 700/- देने होंगे।
6- प्रकाशनोपरांत प्रत्येक लेखक को पुस्तक की 5 प्रतियाँ दी जाएँगी।
7- पुस्तक का लोकार्पण लखनऊ में किया जाएगा।
8- पुस्तक का प्रचार-प्रसार इंटरनेट तथा पत्रिकाओं के माध्यम से करवाया जाएगा।
9- रचनाएँ भेजने की अंतिम तिथि 30 मार्च 2017 है।
10- रचना की वर्ड फाइल अपने परिचय और फोटो के साथ निम्न ई-मेल पर भेजें-
lokodayprakashan@gmail.com

संपर्क:-
लोकोदय प्रकाशन
lokodayprakashan@gmail.com


Tuesday, 31 January 2017

गद्य संकलन

गद्य संकलन
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प्रिय मित्रों,
लोकोदय प्रकाशन, लखनऊ द्वारा सहयोग आधार पर हिंदी गद्य साहित्य का एक संकलन प्रकाशित किये जाने की योजना है जिसका विवरण निम्न प्रकार है-
1- पुस्तक ‘विधा-विविधा’ नाम से होगी जिसमें देश के चयनित 21 साहित्यकारों द्वारा गद्य साहित्य की विभिन्न विधाओं (जैसे कहानी, लघुकथा, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, संस्मरण, लेख, निबंध, शोध आलेख, व्यंग्य, नाटक, आलोचना, विमर्श, अनुवाद, यात्रा वृतांत, एकांकी, गल्प, साक्षात्कार,पत्र लेखन आदि) में लिखी गई रचनाओं को एक बिलकुल नए कलेवर में प्रस्तुत किया जाएगा।
2-मंगल या यूनिकोड फॉण्ट में टाइप की हुई रचनाएँ केवल ईमेल द्वारा वर्ड फाइल में ही भेजी जा सकती हैं। डाक द्वारा भेजी गई पांडुलिपि पर विचार सम्भव नहीं है। रचना के ऊपर सम्बंधित विधा अवश्य इंगित करें।
4- रचना के साथ लेखक अपना पूरा परिचय भी भेजें जिसमें नाम, पिता व माता का नाम, वर्ष व दिनांक सहित जन्म तिथि, सम्प्रति, पूरा पता, मोबाइल नंबर व ई-मेल का उल्लेख आवश्यक है।
5- प्रत्येक सहयोगी लेखक को सहयोग राशि के तौर पर 700/- देने होंगे।
6- प्रकाशनोपरांत प्रत्येक लेखक को पुस्तक की 5 प्रतियाँ दी जाएँगी |
7- पुस्तक का लोकार्पण लखनऊ में किया जाएगा।
8- पुस्तक का प्रचार-प्रसार इंटरनेट तथा पत्रिकाओं के माध्यम से करवाया जाएगा।
9- रचनाएँ भेजने की अंतिम तिथि 30 मार्च 2017 है।
10- रचना की वर्ड फाइल अपने परिचय और फोटो के साथ निम्न ई-मेल पर भेजें-
lokodayprakashan@gmail.com
संपर्क:-
लोकोदय प्रकाशन
lokoday prakashan@gmail.com

Saturday, 14 May 2016

लोकोदय आलोचना श्रंखला

पूँजी और सत्ता का खेल अब हिन्दी साहित्य में जोरों पर है। साहित्य जगत पर बाज़ार का प्रभाव अब स्पष्ट नज़र आता है। मठों और पीठों के संचालक, बड़े अफसर, पूँजी के बल पर साहित्य को किटी पार्टी में बदलने के इच्छुकपैकेजिंग और मार्केटिंग में माहिर दोयम दर्ज़े के रचनाकार पूरे साहित्यिक परिदृश्य पर काबिज होने के प्रयास में लगातार लगे रहते हैं। ऐसे रचनाकारों द्वारा खुद की खातिर स्पेस क्रिएट करने के लिए चुपचाप साहित्य कर्म में संलग्न लोकधर्मी साहित्यकारों को लगातार नज़रअंदाज़ करने, उनको हाशिए पर धकेलने की कोशिश की जाती रही है
  
हिन्दी में बहुत से कवि हैं जिनके लेखन पर मुकम्मल चर्चा नहीं की गयी हैऐसे बहुत से कवि हैं जिन्होंने वैचारिक पक्षधरता को बनाए रखते हुए लोक की अवस्थितियों व संघर्षों का यथार्थ खाका खींचा तथा सत्ता और व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिरोध की भंगिमा अख्तियार की लेकिन उनके रचनाकर्म पर समुचित चर्चा नहीं हो सकी लोकोदय प्रकाशन ने ऐसे कवियों पर आलोचनात्मक  श्रंखला प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। इस श्रंखला का नाम होगा लोकोदय आलोचना श्रंखला इस श्रंखला के प्रथम कवि के रूप में  वरिष्ठ कवि तथा पत्रकार सुधीर सक्सेना के व्यक्तित्व, कृतित्व व काव्य रचना प्रक्रिया पर एक संपादित पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा किताब का संपादन किया जाएगा। इस पुस्तक का सम्पादन प्रद्युम्न कुमार सिंह और उमाशंकर सिंह परमार करेंगे

इस पुस्तक के लिए आलेख आमन्त्रित हैं। इच्छुक लेखक वर्ड फाइल के रूप में कृतिदेव या यूनिकोड फॉण्ट में अपने आलेख परिचय तथा नवीनतम फोटो के साथ इस ई-मेल पर ३० मई २०१६ तक भेज सकते हैं

आलेख भेजते समय यह उल्लेख अवश्य करें कि आलेख सुधीर सक्सेना पर केन्द्रित पुस्तक के लिए भेजा जा रहा है    

Friday, 13 May 2016

हमारी सेवाएँ

लोकोदय प्रकाशन सीधे पाठक तक पुस्तकें पहुँचाने के लिए दृढ संकल्पित हैं पाठकों तक सीधी पहुँच बनाने के लिए हम इंटरनेट के माध्यमों सोशल मीडिया (वेबसाईट, फेसबुक, ट्विटर, लिंकेडिन, गूगल+ आदि), ऑनलाइन बिक्री की साइट्स (अमेज़न, इ-बे, शॉपक्लूज़, आदि) तथा अन्य भौतिक माध्यमों (पुस्तक बिक्री केंद्र, पुस्तक मेला, साहित्यिक आयोजन आदि) का प्रयोग करेंगे इनके साथ-साथ अन्य माध्यमों में लगातार और मजबूत होने के लिए संकल्पित हैं   

पुस्तक के वितरण के लिए हमारे पास उच्च कोटि की व्यवस्था है जिसमें इंटरनेट के सभी प्रतिष्ठित माध्यम सम्मिलित हैं
-अमेज़न.इन, फ्लिप्कार्ट.कॉम, ईबे.इन, सिम्पली.कॉम, पेटीएम्.कॉम, शॉपक्लूज़.कॉम, इंडियाबुक स्टोर.इन सहित तमाम मर्चेंट वेब साईट से पाठक लोकोदय प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तकें खरीद सकते हैं

उच्च कोटि की लाजिस्टिक्स सर्विस कंपनी से अनुबंध होने के कारण हम भारत की प्रतिष्ठित कोरियर कंपनी द्वारा पाठक तथा पुस्तक खरीदार को शानदार डाक सेवा प्रदान करते हैं     

लोकोदय साहित्य श्रंखला

लोकधर्मी साहित्यिक परम्परा से समकाल को जोड़ना आज के समय की जरूरत है इसलिए लोकोदय प्रकाशन द्वारा 'लोकोदय साहित्य श्रृंखला' प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया है। इसके अन्तर्गत लोकधर्मी कविता, लोकगीत, लोककथा, लोककला इत्यादि पर आधारित संकलन प्रकाशित किए जाएँगे। इस श्रृंखला का प्रारम्भ लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलन के रूप में किया जाएगा।
लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलनों की इस श्रृंखला का नाम 'कविता आज' होगा। इसके हर खण्ड में दो भूमिकाओं के साथ 21 महत्वपूर्ण लोकधर्मी कवियों की पाँच-पाँच कविताएँ, उनके परिचय तथा आलोचकीय टीप के साथ सम्मिलित होंगी।
'कविता आज-1' में सम्मिलित किए जाने वाले कवियों के नामों पर विचार कर लिया गया है। इस संग्रह के लिए नये और पुरानों कवियों के योग का ध्यान रखा गया है । 'कविता आज-1' में सम्मिलित होने वाले कवि हैं-विजेन्द्र, सुधीर सक्सेना, अनिल जनविजय, नासिर अहमद सिकन्दर, कुअँर रवीन्द्र, नवनीत पांडेय, मणिमोहन मेहता, बुद्धिलाल पाल, शहंशाह आलम, सन्तोष चतुर्वेदी, भरत प्रसाद, महेश पुनेठा, बृजेश नीरज, प्रेमनन्दन,अरुण श्री, रश्मि भरद्वाज, भावना मिश्रा, पीके सिंह, नरेन्द्र कुमार, नारायण दास गुप्त और शम्भु यादव।

'कविता आज' का सम्पादन उमाशंकर परमार और अजीत प्रियदर्शी करेंगे।

Thursday, 10 March 2016

साथियों को पत्र

प्रिय साथी,

आज हिन्दी साहित्य मठाधीशों और प्रकाशकों के गठजोड़ में फंसकर अपने दुर्दिन की ओर अग्रसर है। प्रकाशन उद्योग पूँजी के हाथों का खिलौना बन चुका है। एक ओर प्रकाशन के नाम पर लेखकों से मोटी रकम वसूली जाती है तो दूसरी ओर सरकारी खरीद में पुस्तकों को खपाकर मोटा मुनाफ़ा कमाने के फेर में पुस्तकों के इतने ऊँचे दाम रखे जाते हैं कि पुस्तक आम पाठक की खरीदी पहुँच के बाहर हो जाती है। ऊपर से रोना यह कि पाठक कम हो रहे हैं, साहित्य की किताबें खरीदने में लोगों की रूचि नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि छोटे शहरों को छोड़ दीजिए बड़े शहरों तक में हिन्दी साहित्य की पुस्तकों की बिक्री के लिए कोई ठीक-ठाक दुकान नहीं है। जो दुकानें हैं भी वहाँ प्रकाशकों द्वारा पुस्तक पहुँचाने में कोई रूचि नहीं दिखाई जाती है। शार्ट-कट से पैसा कमाने की लालसा ने वह बाज़ार ही गायब कर दिया जहाँ ग्राहक पहुँचकर किताब खरीद सकें. प्रकाशकों द्वारा दरअसल मुनाफे के खेल में साहित्यिक पुस्तकों को पाठकों से दूर करने की यह साजिश है जिसमें सबसे अधिक शोषण लेखक का होता है। लेखक से न केवल मोटी रकम वसूली जाती है बल्कि पुस्तक बिक्री से होने वाली आय में उसकी हिस्सेदारी, जिसे रॉयल्टी कहते हैं, से भी वंचित किया जाता है।

इस खेल में तथाकथित वरिष्ठ लेखक भी शामिल हैं। आज सत्ता-प्रतिष्ठानों के इर्द-गिर्द चक्कर काटने वाले ऐसे नामधारी ही प्रकाशन ठिकानों को अपने कब्जे में लिए हुए हैं जिससे इनकी दाल गलती रहे। छद्म प्रतिबद्धता और वैचारिकता का मुखौटा पहने ऐसे नामचीन लेखक आजकल सत्ता-प्रतिष्ठानों से अपनी नजदीकियों को बरकरार रखने के फेर में पूँजीपतियों और ऊँचे पदों पर आसीन अधिकारियों व उनकी पत्नियों को साहित्यकार बनाने की मुहिम चलाए हुए हैं। इस पूरे परिदृश्य में सबसे अधिक नुकसान होता है नए रचनाकारों का। यह पूरा माहौल उन्हें मजबूर करता है इस या उस मठ पर माथा टेकने को। जो ऐसा नहीं करते वे हाशिए पर पड़े रह जाते हैं। दूसरा नुकसान उठाने वाला वर्ग है दूर-दराज़ के इलाकों, छोटे शहरों, गाँव-देहात में रहने वाले रचनाकारों का जिनके पास न तो पहुँच है, न संसाधन और न ही पैसा कि वे छप सकें। कुल मिलाकर परिणाम यह है कि प्रतिबद्ध, आम जनता के सुख-दुःख की बात करने वाली, लोक से जुड़ी रचनाएँ पाठकों तक पहुँच ही नहीं पातीं। पाठकों के सामने परोसा जाता है ढेर सारा कचरा।

ऐसे माहौल को देखते हुए लोक विमर्श के साथियों द्वारा अपने आन्दोलन को मजबूत करने के लिए लगातार यह जरूरत महसूस की जा रही थी कि अपना एक प्रकाशन होना चाहिए जिसके माध्यम से आन्दोलन से जुड़ी पत्र-पत्रिकाओं तथा साथियों की रचनाओं को पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जा सके। साथ ही, प्रकाशकों द्वारा लेखकों-पाठकों के शोषण के खिलाफ खड़ा हुआ जा सके और साहित्य व आम पाठक के बीच विद्यमान दूरी को ख़त्म करके लोकधर्मी आन्दोलन का व्यापक प्रसार-प्रचार किया जा सके। यदि आन्दोलन का अपना प्रकाशन होगा तो आगे तारसप्तक की तर्ज़ पर लोक-सप्तक तथा हिंदी साहित्य के इतिहास के संपादन जैसी प्रस्तावित योजनाओं पर प्रभावी ढंग से काम किया जा सकेगा  इसलिए आन्दोलन से जुड़े सभी साथियों के अभिमत के अनुसार लोकोदय प्रकाशन प्रारम्भ किया गया है।

लोकोदय प्रकाशन एक सामूहिक प्रयास है। इस प्रकाशन की पहली प्राथमिकता कम मूल्य की पुस्तकें उपलब्ध कराना है। पुस्तक की बिक्री के लिए हम सीधे पाठकों तक अपनी पहुँच बनाने का प्रयास करेंगे। प्रकाशन के विभिन्न राज्यों में पुस्तक विक्रय केन्द्र हैं तथा अन्य जनधर्मी प्रकाशनों के साथ मिलकर देश भर में पठन-पाठन का वातावरण सृजित करने के लिए पुस्तक मेला आदि का आयोजन कराया जाएगा। हमारे प्रकाशन की पुस्तकें विभिन्न वेबसाईटों व ई-मार्केटिंग साईटों पर भी उपलब्ध रहेंगी।

प्रकाशन के सुचारू संचालन हेतु दो समूह बनाए गए हैं- सम्पादक मंडल तथा संचालन मंडलसम्पादक मंडल के सदस्यों का उत्तरदायित्व प्रकाशित होने वाली सामग्री की स्तरीयता बनाए रखना है जबकि संचालन मंडल के सदस्य प्रकाशन के सुचारू संचालन में सहयोग करेंगे। प्रकाशन से स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन तथा उन पुस्तकों को पाठकों तक पहुँचाने का कार्य आप सभी साथियों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। इस कार्य में आपका सतत सहयोग और परामर्श प्रार्थनीय है। 

सादर आभार!

   आपका 
लोकोदय प्रकाशन 

Wednesday, 3 February 2016

लोकोदय—एक समानांतर हस्तक्षेप

१-हमारा आन्दोलन

लोकविमर्श जनपक्षधर लेखकों / कवियों का सामूहिक आन्दोलन है। इस आन्दोलन का आरम्भ 2014 जनवरी से हुआ। इस आन्दोलन का पहला बड़ा आयोजन जून 2015 पिथौरागढ़ में सम्पन्न हुआ। इस आन्दोलन का मुख्य लक्ष्य राजधानी व सत्ता केन्द्रित बुर्जुवा साहित्य के प्रतिपक्ष में हिन्दी की मूल परम्परा लोकधर्मी साहित्य तथा गाँव और नगरों में लिखे जा रहे मठों और पीठों द्वारा उपेक्षित पक्षधर लेखन को बढावा देना है। नव उदारवाद व भूंमंडलीकरण के  फलस्वरूप जिस तरह से जनवादी लेखन को हाशिए पर लाने के लिए राजधानी केन्द्रित पत्रिकाएँ व प्रकाशन पूंजीपतियों की अकूत सम्पति द्वारा पोषित पुरस्कारों के सहारे साजिशें की जा रही हैं इससे साहित्य की समझ और व्यापकता पर प्रभाव पड़ा है। अस्तु विश्वपूंजी द्वारा प्रतिरोधी साहित्य को नष्ट करने के कुत्सित प्रयासों व लेखन में गाँव की जमीनी उपेक्षाओं के खिलाफ यह आन्दोलन दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा है। आज इस आन्दोलन में लगभग 100 साहित्यकार जुड चुके हैं। हम मठों, पीठों, पूँजीवादी फासीवादी साम्प्रदायिक ताकतों के किसी भी पुरस्कार, लालच, साजिश का विरोध करते हैं। हम साहित्य में उत्तर आधुनिकता के रूपवादी आक्रमण के खिलाफ 'लोकभाषा' व लोकचेतना  की नव्यमार्क्सवादी अवधारणा पर जोर देते हैं क्योंकि हमारा मानना है कि आवारा पूँजी के इस साहित्यिक संस्करण का माकूल जवाब लोक भाषा और लोक चेतना से ही दिया जा सकता है। लोकविमर्श कोई संगठन नहीं है। यह आन्दोलन वाम संगठनों को मजबूत करने के लिए है। हम छद्मवामपंथियों के खिलाफ हैं जो पद और पुरस्कार पाने के लिए अपनी ताकत व पैसा के प्रयोग करते हुए वैचारिकता को भी नीलाम कर देते हैं क्योंकि हमारा अभिमत है कि ऐसे लोगों द्वारा आम जनता में वाम के प्रति गलत छवि निर्मित होती है। लोकविमर्श आन्दोलन में सम्मिलित होने की केवल एक ही अर्हता है कि व्यक्ति लेखक हो और पक्षधर हो; मठों और पीठों, छद्म लेखकों से दूर आम जन के लिए लिखता हो व जमीन में रहने, खाने, सोने व लड़ने की आदत भी हो। हमारे आयोजन गाँव व छोटी जगहों पर होते हैं। हम होटल व बड़े भवनों का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। जो भी सुविधा स्थानीय कमेटी देती है उसी का प्रयोग करना अनिवार्य होता है तथा न कोई मुख्य अतिथि होता है न कोई नेता या महान व्यक्तित्व होता है, सब आपस में कामरेड होते हैं और आपसी चन्दे से हर आयोजन होते हैं। जो भी साथी इस आन्दोलन में भागीदारी करना चाहें उपरोक्त शर्तों के साथ उनका स्वागत है, अभिनन्दन है।

२-लोकोदय

लोकोदय प्रकाशन लोकविमर्श आन्दोलन का अनुषांगिक व्यावसायिक प्रतिष्ठान है। लोकोदय प्रकाशन की स्थापना साहित्य में प्रभावी बाजारवाद के खिलाफ पाठकों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर की गयी है। हम पूँजीवादी बाजारीकरण के विरुद्ध जनपक्षधर लोकधर्मी साहित्य के प्रकाशन, प्रचार व प्रसार के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह जनपक्षधर लेखकों व कवियों का सामूहिक आन्दोलन है। हम आम प्रकाशनों के बरक्स कम कीमत पर श्रेष्ठ साहित्य आम जनता को उपलब्ध कराएँगे। प्रकाशन के विभिन्न राज्यों में पुस्तक बिक्रय केन्द्र हैं तथा अन्य जनधर्मी प्रकाशनों के साथ मिलकर देश भर में पठन-पाठन का वातावरण सृजित करने के लिए पुस्तक मेला आदि का आयोजन कराया जाएगा। हमारे प्रकाशन की पुस्तकें विभिन्न वेबसाईटों व ई-मार्केटिंग साईटों पर भी उपलब्ध रहेंगी।

३-लोकोदय के उद्देश्य

१- लोकोदय जनपक्षर व लोकधर्मी वाम लोकतान्त्रिक साहित्य व संस्कृति के अभिरक्षण, परिपोषण व प्रकाशन हेतु प्रतिबद्ध है।

२- लोकोदय लोकविमर्श आन्दोलन का अनुषांगिक व व्यावसायिक प्रतिष्ठान है। लोकविमर्श आन्दोलन से जुड़े लेखकों व जनवादी लेखक संघ के लेखकों का प्रकाशन हम अपने संगठन के नियमानुसार करेंगें।

३- लोकधर्मी साहित्य के प्रकाशन हेतु एक गैर व्यावसायिक सामूहिक कोष स्थापित है। जिसकी देखरेख लोकविमर्श आन्दोलन के वरिष्ठ साथियों द्वारा की जाएगी व साथियों द्वारा ही इस कोष की वृद्धि हेतु उपाय सुझाए जाएँगे। लोकोदय अपने स्तर से इस कोष की वृद्धि का हर सम्भव प्रयास करेगा।

४- लोकविमर्श आन्दोलन के अतिरिक्त अन्य लेखकों की किताबों का प्रकाशन गुणवत्ता, विचार व लोकोदय संस्था की व्यावसायिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा। इसका निर्णय हमारी संपादक कमेटी व संचालन कमेटी करेगी।

५- हम पुरानी व अनुपलब्ध आऊट आफ प्रिन्ट लोकधर्मी वाम किताबों के पुनर्प्रकाशन के लिए वचनबद्ध हैं। कोष की उपलब्धता के आधार पर हम समय समय पर ऐसी पुस्तकों का प्रकाशन करते रहेगें।

६-हम सभी ऐसे लेखकों की पुस्तकों का प्रकाशन करेगें जो दूर दराज गाँव व शहरों में संघर्ष कर रहे है़, जो उपेक्षित व प्रकाशकों द्वारा शोषित हैं।

७-हम किताबों को जनता के बीच ले जाएँगे व आम पाठक से प्राप्त टिप्पणियों को 'लोकोदयब्लाग में प्रकाशित करेंगे।

८-लेखकों को रायल्टी दी जाएगी जिसका हिसाब किताब हमारी वेबसाईट पर उपलब्ध रहेगा।

९- हम विधा के रूप में किसी भी कृति के साथ भेदभाव नहीं करेंगे। हम ग़ज़ल, गीत-नवगीत, छन्द, मुक्तक, विज्ञान, इतिहास, लोकसाहित्य व कोश आदि का भी प्रकाशन करेंगे।

१०- प्रकाशन की आर्थिक स्थिति के अनुसार हम समय समय पर लोकविमर्श द्वारा विमोचन व अन्य आयोजन कराए जाएँगे।  

४-हमारे मुख्य प्रकाशन
१- प्रतिपक्ष का पक्ष आलोचना - उमाशंकर सिंह परमार
२- कोकिला शास्त्र कहानी - संदीप मील
३- वे तीसरी दुनिया के लोग - कविता - बृजेश नीरज
४- आधुनिक कविता आलोचना - अजीत प्रियदर्शी
५- यही तो चाहते हैं वे - कविता - प्रेम नंदन


संपर्क
श्रीमती नीरज सिंह
लोकोदय प्रकाशन   
६५/४४, शंकर पुरी,
छितवापुर रोड, लखनऊ- २२६००१
मोबाइल- ९६९५०२५९२३
        ९८३८८७८२७०
ई-मेल- lokodayprakashan@gmail.com

 प्रकाशन के चालू खाते का विवरण 
Lokoday Prakashan
A\ C No. – 35553479436
Bank Name – State Bank Of India
Branch- Industrial Complex Sandila, Hardoi
Branch code- 06938
IFSC Code- SBIN0006938

Sunday, 3 January 2016

घोषणा

लोकविमर्श आन्दोलन के तहत 2016 से जनपक्षीय व लोकधर्मी साहित्य को प्रकाशित कर कम मूल्य पर पाठक तक पहुँचाने की सहमति बनी थी । अत: इसी सहमति के तहत लखनऊ में 'लोकोदय' नाम से प्रकाशन का आरम्भ कर दिया गया है । प्रकाशन की सभी आवश्यक वैधानिक कार्यवाहियाँ पूरी हो चुकी हैं । व्यावसायिक फर्म के रूप में रजिस्टर्ड हो चुकी है । बिक्री हेतु विभिन्न शहरों में केन्द्र तय हो चुके हैं । नेट मे बिक्री हेतु बेवसाईट लांच हो चुकी है व कुछ प्रकाशनों के साथ मिलकर छोटे छोटे पुस्तक मेला आयोजित करने की भी बात तय हो चुकी है । लोकोदय का सारा काम श्रीमती नीरज सिंह  को सौंपा गया है । साथियों द्वारा चन्दा करके कोष एकत्र कर लिया गया है । इस कोष से अभी कुछ छ: किताबों का प्रकाशन होगा जिसकी घोषणा वरिष्ठ चित्रकार कुँवर रवींद्र जी करेंगें । लोकोदय के कोष व व्यवस्था हेतु एक संचालन कमेटी है जिसमें आठ सदस्य हैं व किताबों के प्रकाशन की मन्जूरी एवं जाँच के लिए एक सम्पादन कमेटी का गठन किया गया है जिसमें पांच सदस्य हैं । लोकोदय के संविधान की कुछ खास बातें ये हैं -
१- किताब का मूल्य कम रखा जाएगा ताकि सभी खरीद सकें ।
२- केवल पेपर बैक संस्करण ही छपेगा ।
३-लोकविमर्श के साथियों ने रायल्टी न लेने की सहमति दी है इस रायल्टी को कोष में जमा किया जाएगा ।
४- पुरानी लोकधर्मी व वैचारिक किताबें जो आऊट आफ प्रिन्ट हैं उनका पुन: प्रकाशन होगा ।
५- बिक्री इत्यादि से एकत्र कोष द्वारा लोक साहित्य, लोक भाषा  व इतिहास पर किताबों का प्रकाशन होगा ।