Saturday 2 November 2019

कविता अपनी सम्पूर्णता में जीवन है : प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल

हिंदी-विभाग, समाज विज्ञान एवं भाषा संकाय, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में “हिंदी कविता : कैसे लिखें व पढ़ें” विषय पर 1 नवम्बर, 2019 को कार्यशाला का आयोजन किया गया| मुख्य वक्ता के रूप में हिंदी-विभाग, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के कवि एवं आलोचक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल थे| 
शुक्ल जी ने कविता के विभिन्न पक्षों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि “आपके अन्दर यदि सम्वेदनशीलता है तो कविता वहां से जन्म लेती है| जीवन संघर्ष से है और कविता का उद्भव भी संघर्ष से होता है| जिस समय हम संघर्षरत होते हैं उस समय हृदय में बहुत कुछ टूटता और जुड़ता-सा है| यही टूटना और जुड़ना हमें कविता-सृजन के लिए प्रेरित करता है| कविता अपनी सम्पूर्णता में जीवन है|” 

कवि श्रीप्रकाश शुक्ल बच्चों को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि “कई बार परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं होती हैं लेकिन जब ध्यान लगाकर देखोगे तो कविता यहीं से जन्म लेती है| कविता जिम्मेदारी का एहसास है|” जो विद्यार्थी पहले संकोचवश कुछ न बोलने की स्थिति में थे बाद में कविता में वही जिम्मेदारी की बात पर अपनी-अपनी स्वरचित रचनाएँ सुनाकर शुक्ल जी से कविता-सृजन सम्बन्धी दिशा-निर्देश प्राप्त किया|
  
कार्यक्रम की शुरुआत प्रो. पवित्तर प्रकाश सिंह (संकाय अध्यक्ष एवं एसोसिएट अधिष्ठाता, समाज विज्ञान एवं भाषा संकाय) जी ने कवि-आलोचक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल का स्वागत करके किया| इस कार्यक्रम में समाज विज्ञान एवं भाषा संकाय के अतिरिक्त अन्य विभागों के छात्रों और प्राध्यापकों ने उपस्थिति दर्ज कराई| यह और बड़ी बात थी इस कार्यशाला की कि हिन्दी, अंग्रेजी और पंजाबी तीनों भाषा के विद्यार्थियों ने कविता-सृजन-सम्वाद में भाग लिया|  

कार्यशाला के दौरान विद्यार्थियों ने कविताएँ लिखकर सुनाई और कमियों-खामियों के विषय में निर्देश प्राप्त किया| विभागाध्यक्ष डॉ. अजोय बत्ता ने, जिनका शौक ही होता है ऐसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर कार्यक्रम आयोजित करना, मोमेंटो देकर सम्मानित किया| मंच का सञ्चालन हिंदी-विभाग के एसोसिएट प्रो. विनोद कुमार ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अनिल पाण्डेय ने किया| 
इस कार्यशाला में डॉ. रवि कुमार, डॉ. संजय पसाद पाण्डेय, डॉ. दिग्विजय सिंह पांड्या, डॉ. सांगा, डॉ. करुणा, डॉ. मुदिता भी उपस्थिति रहे| शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने प्रश्न भी पूछे और शुक्ल जी ने बड़ी बेबाकी से उसका उत्तर देकर उनका मनोबल बढाया|

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