Tuesday 9 May 2017

प्रतिक्रिया

लोकोदय प्रकाशन लखनऊ ने दो किताबें भेजी हैं। आभार सहित पावती। 
पहली पुस्तक है संदीप मील का कथा संग्रह कोकिलाशास्त्र और दूसरी है उमाशंकर सिंह परमार की आलोचना पुस्तक प्रतिपक्ष का पक्ष। दोनों से गुजरना हुआ। 
संदीप मील कहानी को औज़ार की तरह इस्तेमाल करते हैं। उनके यहां मध्यवर्गीय कलावाद या टूट फूट चुकी नैतिकताओं के लिए कोई स्थान नहीं है। एक कहानी होती है जो अनवरत चलती है। कहीं रुकती नहीं और न कहीं विचलित होती है। इन कहानियों को पढ़ते हुये मुझे बहुत कुछ मंटो की याद आती रही। 
उमाशंकर सिंह परमार की आलोचना में युवा आक्रोश ही नहीं, युवा क्रोध के स्वर मौजूद हैं। उनकी उग्र वामपंथी विचारधारा को समझे बगैर इन स्वरों को आत्मसात नहीं किया जा सकता। वे एक धुर गंवई इलाके में रहते हैं, जहां शहरी मध्यवर्ग का आनंदवादी आस्वाद पैदा कर पाना मुमकिन नहीं हो सकता। ऐसा करने की उनकी कोई मंशा भी नहीं प्रतीत होती।
- राजकुमार राकेश

                        

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