Thursday, 28 June 2018

अजीत की पुस्तकें


युवा आलोचक डा. अजीत प्रियदर्शी विगत सात-आठ वर्षों से निरन्तर लिख रहे हैं और लगातार पढ़े जा रहे हैं। अकादमिक जगत से जुड़े होने के बावजूद भी वह ‘पाठ्यक्रम’ आलोचना से बहुत दूर हैं तथा अकादमिक जगत में स्वीकृत स्थापित तर्क से परे समझी जाने वाली आम सहमतियों के सर्वथा विरुद्ध हैं। अजीत का आलोचना में आगमन एक झंझावत की तरह हुआ। अध्ययनशीलता, वैचारिक परिपक्वता, तर्क-वितर्क, तोड़फोड़ के साथ वह जनवादी लोकधर्मी साहित्य के लिए एक पृथक जमीन तैयार करते हैं। त्रिलोचन उनके प्रिय कवि हैं। अजीत की पहली किताब साहित्य भंडार से त्रिलोचन पर ही प्रकाशित हुई थी। इस वर्ष उनकी दो आलोचनात्मक कृतियाँ एक साथ प्रकाशित हुई हैं।
पहली ‘कथा आस्वाद के रंग’ और दूसरी ‘आधुनिक काव्य परिदृश्य’। इन दोनों पुस्तकों में संकलित आलेखों को पाठक पढ़ चुके हैं। विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर ये आलेख पर्याप्त चर्चा पा चुके हैं। कुछ आलेख तो काफी विवादास्पद भी रहे हैं। अजीत मेरे प्रिय मित्र हैं। लोकधर्मी कविता पर चर्चा व हाशिए पर पड़े लोकधर्मी साहित्य की खोजबीन समीक्षा तथा जनविरोधी छद्म अवैचारिक लेखन की तीखी आलोचना का संकल्प उन्हें निरन्तर सक्रिय रखता है। इस संकल्प के कारण अजीत ही नहीं जो भी लोकधर्मिता का सवाल उठाते हैं उन्हें दबाने, ख़त्म करने और संगठनों से बाहर करने की कुत्सित राजनीति की जाती है। अपने इस संकल्प का सबसे बड़ा खामियाजा अजीत ने भुगता है।
इन सब बातों से निरपेक्ष रहकर वह लगातार लिख रहे हैं और पूँजी, सत्ता व मठों द्वारा हाशिए पर ढकेल दिए गए लेखन के पक्ष में जोरदार तर्कों के साथ अपनी बात रखते हैं। अजीत की इन किताबों पर मैं बाद में लिखूँगा। अभी पढ़ रहा हूँ। दोनों पुस्तकें उन पाठकों और लेखकों के लिए जरूरी हैं जो साहित्य की आधारभूत सैद्धांतिकता में नवाचार देखना चाहते हैं और जो गुरु-शिष्य परम्परा द्वारा अर्जित रटन्त विद्या के अभ्यस्त हैं व तर्क और सवालों को पाप समझते हैं उन्हें ये किताबें नहीं पढ़ना चाहिए। प्रकाशन हेतु लोकोदय प्रकाशन और बृजेश नीरज भाई को बहुत-बहुत बधाई!
                                                             - उमाशंकर सिंह परमार 

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