Friday 28 December 2018

कविता में ही जीवन के सब रंग समाहित हैं- त्रिलोक महावर


जाँजगीर-चाम्पा। शब्दों से परेजो कुछ भी है, उसकी छाया कविता में उतरती है। कविता में ही जीवन के सब क्रिया व्यापार गुँथे हुए हैं, जिसका कवि मात्र उद्घाटन करता है। उसकी संवेदनशीलता अलग तरह की होती है, वह देखता है फिर महसूस करता है, विचारता है और किसी एक बिन्दु पर पहुँचकर अभिव्यक्ति के लिए छटपटाता है। यह बेचैनी, तनाव और छटपटाहट ही उसे औरों से अलग करती है, यही उसकी रचनात्मकता के मुख्य स्रोत हैं। 
        ये बातें कवि त्रिलोक महावर ने अपनी काव्यकृति ‘शब्दों से परे’ पर आयोजित परिचर्चा एवं काव्य संवाद के कार्यक्रम में कहीं। जाँजगीर के शील साहित्य परिषद के तत्वाधान में आयोजित इस समारोह के मुख्य अतिथि बाँदा, उत्तर प्रदेश के युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार थे। अध्यक्षता शील साहित्य परिषद जांजगीर के अध्यक्ष कथाकार एवं कवि विजय कुमार दुबे ने की। विशिष्ट अतिथि लखनऊ, उत्तर प्रदेश के युवा आलोचक डॉ अजीत प्रियदर्शी थे। स्थानीय मयंक होटल में यह आयोजन दो सत्रों में किया गया। प्रथम सत्र में कवि त्रिलोक महावर का काव्य संवाद, परिचर्चा एवं विमर्श का कार्यक्रम रखा गया था, जिसके तहत कवि त्रिलोक महावर ने अपनी महत्वपूर्ण कविताओं का पाठ किया तथा कविता लेखन के संदर्भ में अपना आत्म वक्तव्य प्रस्तुत किया। इस सत्र में ‘सूत्र’ संस्था के संस्थापक जगदलपुर के कवि विजय सिंह, भिलाई के वरिष्ठ कवि एवं आलोचक नासिर अहमद सिकंदर, डॉ अजीत प्रियदर्शी तथा उमाशंकर सिंह परमार ने कविता संग्रह पर परिचर्चा एवं विमर्श को अपने आलोचकीय दृष्टि के साथ उसके अलग-अलग पक्षों पर बात करते हुए आगे बढ़ाया तथा कवि त्रिलोक महावर की लोकधर्मी रचनाओं की गहनता के साथ पड़ताल की। विजय सिंह ने बस्तर के लोक जीवन के संदर्भ में कविताओं में दर्ज विभिन्न आंचलिक शब्दों के आशय को रेखांकित किया। नासिर अहमद सिकंदर ने कवि केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन और त्रिलोचन की काव्य परम्परा की बात करते हुए कविता के समकालीन स्थितियों पर अपने विचार रखे। उन्होंने त्रिलोक महावर को एक प्रशासनिक अधिकारी नहीं वरन् एक संवेदनशील कवि के व्यक्तित्व को धारण करने वाला, सहज रचनाकार की भूमिका में हमेशा संलग्न कलमकार कहते हुए उनके लेखकीय व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि के तौर पर अपना वक्तव्य कविता संग्रह ‘शब्दों से परे’ पर देते हुए लखनऊ के युवा आलोचक डॉ अजीत प्रियदर्शी ने संग्रह के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को विमर्श के केन्द्र में रखा। उन्होंने दृष्टि सम्पन्न लोकधर्मी कवि के रूप में त्रिलोक महावर की वैचारिक पक्षधरता पर महत्वपूर्ण बातें कहीं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार ने भाषा पर गहराते संकट पर खुलकर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी के बच्चों को तुलसीदास की भाषा समझने और पढ़ने में दिक्कत महसूस हो रही है। कवि त्रिलोचन और नागार्जुन की कविताओं पर समझ बना पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि लोक से वे पूरी तरह कटे हुए हैं। अपने परिवेश को वे समझ-बूझ नहीं पा रहे हैं और खिचड़ी भाषा को अभिव्यक्ति में शामिल करते जा रहे हैं। वे टी.वी. सीरियल की भाषा में जीना चाहते हैं और अपने ग्राम्य समाज से विलग हैं इसलिए वे अलग तरह की भाषा में अधकचरेपन के साथ जी रहे हैं। यह भाषा पर बड़ा संकट है। कवि त्रिलोक महावर अपने लोक से जुड़े हुए हैं और कहीं पर भी उनकी भाषा में विचलन नहीं है, जो उन्हें एक बड़ा लोकधर्मी कवि बनाता है। उन्होंने हिन्दी की परम्परा और नव्यता पर भी विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि त्रिलोक महावर की लम्बी कविता ‘सिक्के की आखिरी साँस’ पर धमतरी छत्तीसगढ़ से आए शाश्वत उत्सर्ग यूथ थियेटर ग्रुप के रंगकर्मियों ने शानदार काव्य रूपक प्रस्तुत किया। इसके बाद प्रदेश भर से आमंत्रित कवियों तथा स्थानीय कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया, जिसमें नासिर अहमद सिकंदर भिलाई, विजयसिंह जगदलपुर, मांझी अनंत धमतरी, कमलेश्वर साहू दुर्ग, गेंदलाल शुक्ल, भास्कर चैधुरी, सूरज प्रकाश राठौर, कोरबा, अरूण सोनी, विजय राठौर, सतीश कुमार सिंह, दयानंद गोपाल, सुरेश पैगवार, दिनेश चतुर्वेदी, लक्ष्मी करियारे, गोवर्धन सूर्यवंशी, गौरव राठौर जाँजगीर ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं। स्वागत उद्बोधन शील साहित्य परिषद् के अध्यक्ष विजय कुमार दुबे ने दिया। शील साहित्य परिषद की ओर से कार्यक्रम का संयोजन और संचालन कवि सतीश कुमार सिंह ने तथा आभार ज्ञापन परिषद के सचिव विजय राठौर ने किया। इस अवसर पर जाँजगीर के वरिष्ठ कवि नरेन्द्र श्रीवास्तव, रामेश्वर गोपाल, ईश्वरी यादव, परिषद के उपाध्यक्ष बल्देव प्रसाद शर्मा, राधेश्याम सोनी, अरूण सोनी, उदयराम राठौर, आनन्द पाण्डेय, हरप्रसाद निडर, रामगोपाल राठौर, संजय शर्मा, एस.बी. शर्मा, सतीशचन्द्र शुक्ला, रोशन नेमी, अंकित राठौर सहित बड़ी तादाद में साहित्यानुरागी उपस्थित थे।

-    सतीश कुमार सिंह 

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