Monday 4 November 2019

रचनात्मक विश्वसनीयता के लिए लघुपत्रिकाएं आज भी महत्वपूर्ण हैं: श्रीप्रकाश शुक्ल

“आज लघु पत्रिका के सामने बहुत संकट है| लघु पत्रिकाओं के पास कोई सोर्सेज नहीं रह गये| लघु पत्रिकाओं की मदद करने वाले लोग नहीं हैं| नई पीढ़ी इसके लिए तैयार नहीं है| दस रुपये की पत्रिका खरीदना नहीं चाहती| आप चाहते हैं कि रचना छपे तभी खरीदें| आप ने यदि किसी रचनाकार को संशोधित करने के लिए कहें तो नाराज हो जाएगा और किसी बड़े के खिलाफ थोड़ी सी टिप्पणी कर दिया तो वह नाराज हो जाएगा और क्या करेगा कि खराब से खराब कविता सोशल मीडिया पर टांग देगा और कहेगा लो मैं कवि बन गया| युवा पीढ़ी के जो छात्र हैं मैं यकीन दिलाता हूँ की यह केवल भ्रम है|  सोशल मीडिया पर सीधे रचना टांग देने से वह टंगी रह जाती है उसको कोई रचनात्मक विश्वसनीयता आज भी नहीं मिलती| जब तक पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आप अपना रचनात्मक विस्तार नहीं करते, इसमें किताबें भी शामिल हैं| पुस्तक और पत्रिका का आज भी कोई विकल्प नहीं है| बिम्ब-प्रतिबिम्ब इस सभी जरूरी मुद्दों को आगे लेकर जाएगी यह विश्वास और अपेक्षा रहेगी|” यह कहना था समकालीन हिंदी कविता के महत्त्वपूर्ण कवि एवं आलोचक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल का जो बिम्ब-प्रतिबिम्ब लोकार्पण कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे| 
प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने अपना विचार प्रकट करते हुए कहा कि  पत्रिका का पहला अंक आपके हाथ में है ।बहुत लोगों ने पढ़ा होगा लेकिन इतना जरूर है कि जब कोई भी अपने प्रकाशित फ़ार्म में पत्रिका आती है तो उस पत्रिका की सबसे बुनियादी विशेषता यह होती है कि वह अपने परिसर में एक तरह की हलचल उत्पन्न करती है|  साहित्य की पत्रिका जो अंततः भाषिक संस्कार की पत्रिका होती है जो केवल अख़बार नहीं होती और केवल साहित्य नहीं होती| अख़बार और साहित्य माने सम्वेदना और विचार के बीच में भाषा का वह संसार होता है जो अपने परिवेश से जुड़कर के उसमें कुछ हलचल पैदा करता है| हलचल उत्पन्न करने का मतलब यह होता है कि वह बताता है अपने परिवेश को कि कुछ ऐसे नवांकुर कुछ ऐसे नए रचनाकार अंकुरित हो रहे हैं जिनकी तरफ ध्यान जाना चाहिए जिनको पोषना चाहिए, जिनको आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए| यह एक पत्रिका की बनावट का अनिवार्य हिस्सा होता है कि उसमें वरिष्ठ, जो स्थापित होते हैं उनके साथ-साथ कुछ ऐसे नए को स्पेस देती है जो भविष्य में साहित्य और संस्कृति की दुनिया में बड़ा नाम करते हैं| यह पत्रिका उसी दिशा में एक बड़े सराहनीय प्रयास के रूप में देखी जा रही है और मुझे ये उम्मीद है कि वरिष्ठ और कनिष्ठ के बीच में एक अनिवार्य सेतु के रूप में कार्य करेगी| वरिष्ठों को भी इसमें पर्याप्त महत्त्व दिया गया है जिससे कि साहित्य की साख बनती है और उन कनिष्ठों को भी पर्याप्त स्थान दिया गया है जो अभी सीख रहे हैं या अभी सीखने की प्रक्रिया में हैं| एक पत्रिका की बुनियादी विशेषता होती है इस पर मैं संतुष्ट होता हूँ कि अनिल ने इस दिशा में कुछ प्रयास किया है कुछ प्रभावित करने कोशिश की है| 
बिम्ब-प्रतिबिम्ब और वर्तमान समय के सरोकार को स्पष्ट करते हुए उन्होंने आगे  कहा कि एक पत्रिका के लिए यह भी जरूरी होता है कि जो क्षेत्रीय आकांक्षाएं होती हैं उनको स्वर दे| जो कुछ कह सकते हैं कि बेचैनी होती है, आरंभिक संकेत रचनात्मक धरातल पर होती हैं उनको शिनाख्त करने की कोशिश करती है| अच्छी पत्रिका का बुनियादी दायित्व है कि वह नए रचनाकारों को उठने के लिए स्पेस दे| इस पत्रिका के बारे में यह बड़ी बात है कि वह इसका निर्वाह करने में सक्षम है| साहित्यिक विश्वसनीयता के दायरे में कोई भी लघु पत्रिका आज भी विश्वसनीय होती है| रचनात्मक विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन एक अनिवार्य साहित्यिक उपक्रम है क्योंकि रचनात्मक विश्वसनीयता तब तक नहीं बन सकती किसी लेखक की जब तक वह किसी पत्र या पत्रिकाओं के माध्यम से आगे न आए| जो बगैर पत्रिका के किसी पुस्तक में सीधे प्रकाशित होता है, प्रकाशित तो हो जाता है लेकिन जब तक किसी पत्रिका के माध्यम से विस्तार नहीं पाता, लाख कोशिशों के बावजूद ठीक से लोगों के बीच नहीं पहुँच पाती| 
शुक्ल जी अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं-अगर कोई रचना पत्रिकाओं में छपकर सोशल मीडिया में आती है तो उसका अर्थ अलग होता है और हो सीधे सोशल मीडिया में प्रकाशित होती है उसका अर्थ अलग है| सोशल मीडिया में देखा, पसंद भी किया और चलता बना लेकिन इसमें ऐसा नहीं है| छपने के पहले का जो आनंद है वह पत्रिकाओं के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है न कि सोशल मीडिया के माध्यम से| बिम्ब प्रतिबिम्ब अपनी भूमिका में यह सब ध्यान रखकर चलेगी यह विश्वास है| 
सम्पादक के प्रति अपना विचार रखते हुए प्रो  शुक्ल  ने कहा कि मेरे लिए गौरव की बात है कि मैं बिम्ब-प्रतिबिम्ब पत्रिका की लोकार्पण का साक्षी हूँ| अनिल मेरे शिष्य ही नहीं मेरे लिए छात्रवत हैं| ये केवल सम्पादक ही नहीं हिंदी साहित्य में खासकर के कविता एवं आलोचना नामक विधा में एक ऐसी अनिवार्य युवा उपस्थित हैं जिनसे आगे के लिए हम सबको काफी उम्मीदें हैं| ये जब तक जालंधर में हैं तब तक साहित्य की सेवा कर रहे हैं|
जालंधर के युवा उपन्यासकार अजय शर्मा ने यह कहते हुए पत्रिका को जरूरी बताया कि पंजाब कला साहित्य अकादमी, जालन्धर ने लगातार महत्त्वपूर्ण कार्य किया है और आज भी कर रहा है| यह संस्था राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही है| इस दृष्टि से कहें तो पंजाब की रचनाशीलता को आगे लाने में इस पत्रिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण होनी चाहिए| अनिल के अन्दर शुरू से एक कोशिश थी जिसे उन्होंने रचनात्मक आयाम दिया तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए|
वरिष्ठ आलोचक तरसेम गुजराल का कहना था अच्छी पत्रिकाओं का बहुत अभाव है| हम सभी अच्छी पत्रिकाओं के लिए तरस रहे हैं| इधर पंजाब क्षेत्र के रचनाकारों को राष्ट्रीय फलक पर लाने की जरूरत है जो बिम्ब-प्रतिबिम्ब द्वारा लायी जानी चाहिए|
अध्यक्षीय वक्तव्य के साथ जालंधर के वरिष्ठ साहित्यकार और कवि सुरेश सेठ ने यह कहते हुए पत्रिका को महत्त्वपूर्ण बताया कि अनिल को एक सम्पादक के रूप में देखकर अच्छा लग रहा है| अनिल की आलोचना दृष्टि में जो निर्भीकता है वह इस पत्रिका में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है| इसके स्तम्भ हमें आकर्षित ही नहीं करते अपितु दूर तक चिंतन करने के लिए विवश भी करते हैं| अनिल बिम्ब-प्रतिबिम्ब के साथ अपनी भूमिका में निष्पक्ष रहें यही अपेक्षा है|इस अवसर पर उन्होंने जालंधर की हिंदी पत्रकारिता की विस्तार से चर्चा भी की।
विदित हो कि 1 नवम्बर, 2019 को पंजाब कला साहित्य अकादमी (रजि.) जालंधर द्वारा प्रेस क्लब, जालंधर में बिम्ब-प्रतिबिम्ब के लोकार्पण का कार्यक्रम रखा गया| यह संस्था राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य एवं संस्कृति को विस्तार देने में सक्रिय है| संस्था के अध्यक्ष श्री सिमर सदोष के अनुसार पंजाब की पंजाबियत और साहित्य की नवता को वैश्विक धरताल पर पहुँचाना इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य है|पंजाब कला साहित्य अकादमी, जालंधर हर वर्ष एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम का आयोजन करती है जिसमें नवांकुर से लेकर साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को सम्मानित भी किया जाता है| लोकार्पण कार्यक्रम की अध्यक्षता जालंधर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि श्री सुरेश सेठ ने की| 
इस लोकार्पण कार्यक्रम में जालंधर के वरिष्ठ रचनाकार दीपक जालंधरी, कवयित्री कमलेश आहूजा, वीणा विज, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के शोधार्थी मदन कुमार, सत्यवान, संजय सिंह यादव, यशराज सिंह भी मौजूद रहे|  

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