Saturday, 26 May 2018

अंतर्प्रतिध्वनि

अंतर्प्रतिध्वनि जय मिश्रा का कविता संग्रह है। यह कविता संग्रह सामान्य दिनचर्या को जीते इंसानों के भौतिक जीवन और उससे उभरी असामान्य मानसिक जद्दोजहद का आईना है। अपरिपक्व, अधूरे और उलझे विचारों को शब्दों में कैद करती ये कविताएँ इंसानी ज़िन्दगी की तरह ही बेबस और कभी-कभी बेमतलब और अर्थहीन प्रतीत होती हैं। विभिन्न संवेदनाओं को एक लड़ी में पिरोती ये कविता-संग्रह, अपूर्ण जीवन को सम्पूर्ण करने का एक साकारात्मक प्रयास है।
8 जुलाई 1982 को बेगूसराय (बिहार) में जन्मे जय कुमार मिश्रा का बचपन भारत की कोयला राजधानी धनबाद में पिता श्याम नंदन मिश्रा (बी.सी.सी.एल में मुख्य अभियंता), माता जयंती मिश्रा और तीन भाई, अजय, विजय और अभय के साथ बीता। डी.ए.वी. स्कूल, अलकुसा, धनबाद से मैट्रिक और डी.पी.एस., धनबाद से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करके आई.आई.टी. (बी.एच.यू.), वाराणसी से आपने ख़नन अभियांत्रिकी में स्नातक किया। तत्पश्चात आप टाटा स्टील में ख़नन अभियंता रहे और फिर बम्बई आकर एक हिंदी धारावाहिक के लिए लेखन किया। बम्बई की भागदौड़ जब रास ना आई तो आप पी.एच.डी. करने अमरीका आ गए और राइस विश्वविद्यालय, ह्यूस्टन से 2015 में भूविज्ञान में डॉक्टरेट हासिल की। अभी आप अपनी पत्नी स्वास्तिका और बेटे रायन के साथ ह्यूस्टन में रहते हैं और एक निजी संस्थान के लिए काम करते हैं। कविता लिखना आपके लिए बस शौक नहीं अपितु अपने विचारों की अभिव्यक्ति और आदान-प्रदान का एक सशक्त माध्यम है। अपनी कविताओं से आप आधुनिक युग में इंसानों की मानसिक कश्मकश को कागज़ों में कैद करने में प्रयत्नशील हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर अपनी कविताएँ प्रकाशित करने के बाद अब आप अपनी कविताओं को कविता-संग्रह के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं।
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