Tuesday 8 May 2018

होते करते


‘होते करते’ के डी सिंह द्वारा लिखित 20 व्यंग्य आलेखों का संग्रह है। युवा उदीयमान सम्मान, उ प्र. हिन्दी संस्थान के बाल कृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार तथा शरद जोशी सर्जना सम्मान से सम्मानित के डी सिंह व्यंग्य के प्रति एक स्पष्ट दृष्टिकोण रखते हैं। वे लिखते हैं - "बजाय इसके कि हम जानें कि व्यंग्य क्या है, यह जान लें कि व्यंग्य क्या नहीं है। एक गरीब रिक्शे वाले के माथे से गिरता पसीना व्यंग्य नहीं है...किसी कमजोर की उपेक्षा या तिरस्कार व्यंग्य नहीं है....किसी दबे-कुचले आदमी की कराह में हास्य पैदा नहीं होता...हमारे आपके जीवन का हर वो पहलू, जो हम इतनी सच्चाई से जीते हैं कि आइने के सामने भी खुद से आँख मिला सकें...वो हर पहलू...वो हर क्षण...व्यंग्य नहीं है। बाकी जो कुछ भी बचता है वह व्यंग्य है। आप जो भी कर रहे हैं, जब तक उसमें आपकी अंतरात्मा की सहमति है...तब तक आपके कृत्यों पर व्यंग्य नहीं हो सकता....पर जब आप खुद जानते हों कि जो कुछ घटित हो रहा है वह केवल दिख रहा है....या दिखाया जा रहा है....पर उसकी वास्तविकता आपकी आत्मा को पता है...तो आप पर या आपके कृत्य पर पहला व्यंग्य आपकी अपनी आत्मा ही करती है....और व्यंग्यकार को यह सिफत हासिल है कि वह अपनी आत्मा की आवाज के साथ-साथ, आपकी आत्मा की भी आवाज साफ-साफ सुन सकता है।"


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