Monday, 22 July 2019

लोकोदय प्रकाशन की पुस्तकें

कुछ महीने पहले हमें लखनऊ के उभरते हुए महत्वपूर्ण प्रकाशक-लोकोदय प्रकाशन की कुछ पुस्तकें मिलीं, जिनमें से 03 किताबें आप सबके बीच रखते हुए संतोष और प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ इनमें से पहली पुस्तक प्रतिभाशाली युवा कहानीकार संदीप मील की है- कोकिलाशास्त्रइसमें मुझे जो सबसे खास बात लगी, वह है विषय के अंतर्वाहय तत्वों को बारीक भाषाई कौशल में बाँधने की हुनर संदीप मील की भाषा ही वह ताकत है जो दूर तक साथ ले चलने और अपना भावात्मक असर छोड़ने की क्षमता रखती है
दूसरी पुस्तक है- बाबा उवाच, प्रदीप कुमार कुशवाहा की
प्रदीप जी ने लघु कहानियों के बहाने जीवन की छोटी-छोटी सच्चाईयों को व्यंग्य की जिस धार पर तराशा है, वह एक अलग रस को पैदा करने में सक्षम है वह रस है- यथार्थ की विद्रूपता का रस, स्थितियों की बेतरतीबी का रस
तीसरी पुस्तक का शीर्षक है- जीवटता का बुन्देली राग, जो कि प्रदीप कुशवाहा जी के व्यक्तित्व और जमीनी रचनाशीलता पर केन्द्रित पुस्तक है
 इसका संपादन बृजेश नीरज जी ने किया है आज जबकि हम और हमारे तमाम कलमकार दिल्लीपरस्त हुए जा रहे हैं, ऐसे में कुशवाहा जैसे आंचलिक जीवन और जन-मन का राग छेड़ने वाले सर्जक को सामने लेन का, समयार्पित करने का प्रयास बेहद जरूरी और कीमती हो चुका है
इन तीनों पठनीय और महत्वपूर्ण पुस्तकों के लिए दोनों रचनाकारों को और लोकोदय प्रकाशन, लखनऊ को बधाई और शुभकामनाएँ
- भरत प्रसाद 

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