डॉ उषा अरुण की ग़ज़लें ख़ूबसूरती और तग़ज़्ज़ुल से लबरेज हैं।संकलन की ग़ज़लें जैसे सुबह की पहली किरण सी ज़िन्दगी की स्याह रंगों की दुनिया को रौशन करती दिखती हैं। इनकी रेशमी ग़ज़लों में ग़ज़ल की अपनी ज़मीन, फ़िक्र, रवानी और अपना रंग व लहजा है पहली किताब ही उनके ख़यालों की बुलंदी और शख्शियत की नुमाईंदगी करती नज़र आती है। कीमती अशआर जीवन के मुख़्तलिफ़ रंगों की तवील दास्तान है।
एक भी जगह रुकी तो सड़ने लगूंगी शायद,
जो एक जगह न टिकने दे वो बहाव हो तुम।
और-
जहाँ थी मैकशी, वाँ ज़ाहिदी हम सह न पाए।
रही दिल की इसी दिल में मगर कुछ कह न पाए।
बुझा दे तश्नगी तेरी, समंदर है जिगर मेरा,
मगर क्या करें कि उस तलक हम बह नहीं पाए।
गागर में सागर भर देने वाले अशआर मुतास्सिर करते हैं, गोया
लिए जो रंग तुझसे, सब फ़िजां में बांट देती हूं।
अहम अपनी मुझे दो गर मैं अपना आप देती हूं।
नज़र में है हया अब भी वही लिहाज है बाक़ी ,
अगर जो कुछ फ़रेबी है मैं उसको ढाँक देती हूं।।
इश्क़ के मुख़्तलिफ़ पक्षों, संबंधों व विसंगतियों की पड़ताल करती पंक्तियाँ क़ाबिले-ग़ौर है-
सलीबें आप ढोते, हौसला रखते।
तभी तो संग हम भी काफिला रखते।
तेरा मेरे सिवा है और भी कोई,
पता होता अगर तो फासला रखते।
मशीनी दौर में ताल्लुक़ कहाँ ज़िंदा,
मिला करते कभी ये सिलसिला रखते।
और-
भुलाना, याद रखना, मौत हर सूरत।
बता अब ज़िन्दगी में फिर मज़ा क्या हो?
मेरे ये लफ़्ज़ जिस्मों-जाँ खुरचते जब,
तेरी चुप्पी से फिर बढ़के सजा क्या हो?
ग़ज़लें बहुत क़रीब से देखे/जिए गए हादसों का आईना है, बानगी देखिये..
ज़हन में तैरती है याद सब आवाज़ की तरहा।
सुनाए ज़िन्दगी भी धुन कि टूटे साज़ की तरहा।।
मिलो ऐसे कि शोलों को हवा मिलती रहे हरदम,
पिघलकर गिर सकूँ पन्नों पे तब अल्फ़ाज़ की तरहा।।
चले जातें है सब फिर से नशेमन को खिज़ा करके।
बहुत देखा है हमने दिल हमारा आशियाँ करके।।
सितारे चुभ रहे आफ़ताब से भी पाँव जलते हैं,
ज़मी को क्यों गया वो इस तरह से आसमां करके।
रिश्तों में है मुनासिब फासला रखना।
पर ज़रा मिलने का तुम सिलसिला रखना।
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कभी यूँ बेवजह दर्द जाया नहीं करते।
ये दौलत किसी पे भी लुटाया नहीं करते।
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कहे जो तू ग़ज़ल तो वाह कर लूं।
कदम रख दे जिधर दरगाह कर लूं।
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अश्वनी कुमार सिंह
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