Sunday 19 January 2020

वह साँप सीढ़ी नहीं खेलता

सच में एक अलग तरह की सोच, जमीनी स्तर से अंतरिक्ष तक, बचपन से लेकर बुढ़ापे तक की अनेक अनुभूतियों को साँचे में ढालकर कविता का नया रूप, नयी ढाल Ganesh Gani जी की कविताओं में देखने को मिल रही है। पहाड़ों की शांति और ताज़ी आबोहवा से रूबरू होते हुए झरझर बहते हुए झरनों से सांय सांय नदियों का रूप लेते हुए अनंत अथाह समुद्र की गहराई के साथ खारेपन का आस्वादन करवाते हुए प्रकृति के विभिन्न रूपों से लबालब पुरुष प्रकृति और जीवन में आते बदलाव समय के साथ बदलते मौसम और मौसम के अनुसार मेहनत करते बूढ़े बाबा (किसान) के दर्द को नज़दीकी से महसूस किया जा सकता है। 
सबसे पहले तो 
उसके सपनों की हुई हत्या 
संविधान में दर्ज 
उसके हक का ही जब 
घोंटा गया गला 
तो फ़िर उसने उसी फंदे मे 
अपने गले को डाल दिया 
एक किसान की वीरगाथा को पढ़ते हुए मैं सच में उसी जगह में पहुँच गया था जहाँ आंदोलन करते हुए एक किसान ने पेड़ पर लटक कर आत्महत्या कर ली थी। गनी जी कहते हैं कि-
हालाँकि जंगल में बैठक जारी है 
मकड़ियों की 
........................ 
जबकि इतिहास दरबारी है 
इसके पन्नो पर 
कहीँ दर्ज नहीं हो पाएगी 
यह वीरगाथा दर्ज कर ली है 
पेड़ ने अपने बीज में। 
आदमी क्यों इतना मतलबी हो गया है कि वह हर जगह शिखर पर खुद को ही देखना चाहता है, कोई उस तक न पहुँचे-
वह इन दिनों मद में चूर है 
उसकी चाल गोष्ठियों में 
कुछ अधिक टेढ़ी हुई है
............................
....वह केवल वहाँ अपना मुँह खोलता है 
जहाँ छापाखाना है 
जहाँ पुरस्कार की कमेटी बनती है 
जहाँ संपादकों का आना जाना है 
बस अब सब शहर शहर हो गया है, गाँव में कुछ नहीं जो कुछ है वह गँवार बच गया है बाकी सब शहर का बसर है 
कविता.....यह किसका घर है ... 
समय की रेत जीवन मुट्ठी से 
धीरे-धीरे फिसल रही है 
अब चाहता हूँ 
गमलों में जंगल बसाना 
...................समय तो है ही परिवर्तनशील लेकिन समय के साथ आदमी अपनी माटी अपना देश सब भूलता जा रहा है, वह ऐसे सपने देख रहा है जिसमें जीवन ही नहीं है। 
कहाँ कर पाते बड़े 
जो बच्चे कर लेते हैं..... 
दोस्तों को दे सकते हैं 
अपना सबसे कीमती खिलौना 
या खोने पर भी
 नहीं करते हैं विलाप
 नहीं रूठते देर तक। 
बच्चों से जो सीख लेनी चाहिए हम उसे बच्चों का बचपन कहकर अपने मन की करते हैं। इस कविता को पढ़कर मुझे लगता है कि गनी जी बच्चों को पढ़ने में खूब समय बिताते हैं। बहुत गहरी बातों को बचपन से ही कविता में ढाल दिया है। अभी और बहुत कुछ बाकी है।
  • राजेश सारस्वत 

No comments:

Post a Comment