रामचन्द्र कर्ण नाम के अनुरूप ही मृदुभाषी एवं मिलनसार
स्वभाव के हैं। सजगता तो इनके चेहरे पर ललकती रहती है। साहित्य के प्रति इनका
रुझान बहुत प्रबल था लेकिन परिस्थितियाँ ने इनके कदम को गति नहीं लेने दिया। ‘‘समय पाय तरुवर फरहिं’’ की तरह सन 1971 में आपकी लेखनी सृजनशीलता की ओर चल पड़ी और तब से लगातार
गतिमान है। समसामयिक विषयों पर इनकी कलम बखूबी चली है। बिना किसी लाग-लपेट के कर्ण
अपनी बात बड़ी दृढ़ता के साथ सबके समक्ष रखते हैं। साहित्य साधना ने इनको ऊँचा
स्थान ही नहीं दिलाया बल्कि कई ख्यातिलब्ध संस्थानों से सम्मानित भी कराया।
- अनिल कुमार मिश्रा
सचिव ‘‘वातापन’ उमरिया, जि- उमरिया (म.प्र.)
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