जनम महादेवी
वर्मा की जन्मस्थली और दालमोठ के लिए मशहूर फर्रुखाबाद के एक बेहद पिछड़े गाँव
अर्राहपहाड़ के दलित समुदाय में हुआ। पढ़ाई पड़ोसी गाँव की पाठशाला से शुरू होकर
बुन्देलखण्ड के महोबा से होते हुए बृज प्रदेश के हसायन सासनी जैसे छोटे कस्बों तक
आक़र हाथरस जिले तक आयी।
गाँव, कस्बा, शहर सब अपने खालिस
रूप में बेहद करीब से देखे जिनकी अंतरंगता ने कई जगह झकझोरा भी और अपनी छाप हमेशा के लिए मन में छोड़
दी। विडम्बना यह रही कि समाज में धड़ल्ले से फैली आँखों-देखी भोगी-सड़ांध ने बागी
किस्म का बना दिया। लव कम अरेंज मैरिज के साइडइफेक्ट्स ने ज़िन्दगी को और ज्यादा
सतही और रिश्तों के प्रति सफेद या काले जैसा नज़रिया अपनाने पर मजबूर कर दिया। फिर
भाई के सुझाव से कलम को हथियार बनाया और आत्मकथांश के अलावा लक्ष्मी, छनैला, बदसूरत और अनुसुइया जैसी कहानियाँ लिखीं, जिन्हें पाठकों ने सराहा। इन सभी कहानियों में निज ने
सीमाएँ तोड़ते हुए व्यापक रूप अख्तियार किया है।
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