जनम देश की राजधानी दिल्ली में और पढ़ाई का बड़ा समय उत्तर प्रदेश की राजधानी
लखनऊ में बीता..जहाँ मामला बी.ए. तक आते-आते चौपटाचार हो चला..दो आत्महत्याओं के
प्रयासों के चलते हापुड़ चाचा के पास भेज दिया गया, जिन्होंने न केवल एम.ए. कराया बल्कि किताबों का संसार
भी दिखाया.. इस मामले में उनसे भी ज़्यादा अभियान चलाकर पूरा विश्व साहित्य पढ़वाया
लेखक और प्रकाशक अशोक अग्रवाल ने..
कैरियर नाम की बला सूचना विभाग, लखनऊ से उसी फर्स्ट डिवीज़नीय एम.ए. की बदौलत शुरू हुई, जो नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, स्वतंत्र भारत, बिज़नेस इंडिया टीवी, सहारा टीवी, अमर उजाला से
होती हुई दो अखबारों नई दुनिया, जबलपुर और मेरठ हिन्दुस्तान का संपादक बना गई..लेकिन अपनी लेखनी को चमकाने में
सबसे बड़ा योगदान मुज़फ्फरपुर के पाँच वर्षों का है, जहाँ मृणाल पांडे ने हिन्दुस्तान का समाचार संपादक
बनाकर इस सदी की शुरूआत में भेजा था..
लेखन को धारदार बनाने फेसबुक का बहुत शुक्रगुजार हूँ..अनुपम वर्मा नामका
प्राणी भी मुझे फेसबुक पर मिला, जिसने मेरे जीवन में आये एक अवर्णीय हादसे से न केवल मुझे बचाया, बल्कि उबारा भी.. हमनवा जैसे धीर गंभीर एहसास को अर्थ
देने में अनुपम ने मेरा साथ दिया..यह साथ बना रहे, यही दुआ है मेरी...
आमीन..
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