Friday 29 November 2019

मैं बनूँगा गुलमोहर- पुस्तक समीक्षा

“मैं बनूँगा गुलमोहर” सुशोभित सक्तावत का पहला कविता संग्रह है। “मैं बनूँगा गुलमोहर” प्रेम कविताओं का गुलदस्ता है जो प्रेम, मिलन, प्रतीक्षा, चाहनाओं, कामनाओं और ऐषणाओं के अनगिन फूलों से गुंथ कर बना है। सुशोभित ऐसे शब्द-शिल्पी हैं जिनकी कविताओं तथा वृतांतों में अतिरिक्त शब्द नहीं मिलेगा। जहाँ जो होना चाहिए वह वहाँ ही मिलेगा। उनके बिम्बों में ताजगी है। उनकी कविताओं में हर बिम्ब नया है।
लाल रंग प्रेम का रंग है इसलिए लाल रंग उत्सव का भी प्रतीक है। प्रेम के बिना उत्सव कहाँ? लालसा, कामना का भी रंग लाल है। लाल रंग अन्य रंगों से मिलकर कई रंगों की उत्पत्ति करता है। जीवन ऊर्जा से संचालित है। ऊर्जा का रंग भी लाल है। रक्त का रंग भी लाल इसलिए लाल को रक्त रंग भी कहते हैं। लाल रंग में जब पीला मिलाते हैं तो नारंगी लाल बनता है जिसे केसरिया भी कहते हैं जो सूर्योदय का रंग भी है। सूर्योदय की पहली किरण जब धरती को स्पर्श करती है तो उसकी उष्मा से हर जीव आलस्य त्याग नई ऊर्जा नयी उमंग से भर जाता है। नई उत्पत्ति होती है। इस प्रकार जीवन अपनी धुरी पर चलता रहता है।
गुलमोहर के फूल का रंग भी नारंगी लाल है। लोग इसे लाल फूलों वाला पेड़ तथा स्वर्ग के फूल भी कहते हैं। इसमें औषधीय गुण अत्यधिक होते हैं। इसके मकरंद से शहद बनता है। इसमें पत्तियाँ नाममात्र की ही होती हैं। किन्तु यह अपने रक्तिम फूलों से लदा इतना सुंदर दिखता है कि लोग इसे अपने आंगन में लगाना पसंद करते हैं इसलिए कवि कहता है “मैं बनूँगा गुलमोहर”।
आज की अखबारी भाषा में कहें तो सुशोभित फेसबुक सेनसेशन हैं! यह अतिशयोक्ति भी नहीं होंगी। उनके फेसबुक पोस्टों का गुलमोहर के फूलों से तुलना की जाये तो कहा जायेगा पाठक उसके मकरंद से शहद बनाने की कोशिश करते हैं। सुशोभित विद्यावसनी कवि लेखक हैं। उनके अध्ययन का विस्तार इतना है कि अपने शब्दों से नित्य नये वितान रचते हैं। वे यूँ ही संवेगो से आवेशित होकर नहीं लिख देते। सुविचारित तरीके से अपनी बातों को रखते हैं।
संग्रह की पहली कविता “प्रेम पत्र” में इसकी बानगी देखिये

 कांस की सुबहें
और सरपत की साँझे
तुम्हारे पूरब-पच्छिम थे

जब गूँथती थी चोटी तो
हुलसते थे चंद्रमा के फूल

और काँच की चिलक जैसी
मुस्कुराहट तुम्हारी लाँघ जाती थी देहरियाँ
जबकि अहाते में ऊँघता रहता था
दुपहरी का पत्थर

कि मैं जो न होता तुम्हारे बरअक्स
और तुम में तो ढह जाती नमक की मीनारें
और पाला सा पड़ जाता रेशम और रोशनियों पर
और सेब की ओट हो जाती पृथ्वी

कवि ऐसा शब्द चितेरा है जिसके चित्रों में प्रेयसी और प्रणय के शब्द चित्रों को आप पढ़ते नहीं बल्कि देखते हैं। संग्रह में कवि ने प्रेम, विरह, लालसाओं, कामनाओं के कई चित्र उकेरे  हैं। कवि अपने प्रेम की उद्घोषणा करता है।

और, मैंने भी तो लिख डाले हैं
प्यार के इतने अनगिन तराने
और साथ ही कहता है…

//अच्छा सुनो
यदि प्रेम हो
तो संकोच न करना
कह देना निशंक: मैं प्रेम में हूँ!

होना यूँ तो मुकम्मल है पर नाकाफी
मुकम्मल काफी हो
ये जरुरी तो नहीं!

मत रखना दुविधा
कह देना कि प्यार है
मुझसे न कह सको तो
कह देना किसी दरख़्त से
या मुझी को मान लेना
चिनार का एक पेड़!

जब प्रेम में होओगी तुम और
कहना चाहोगी अपना होना
मैं बनूँगा गुलमोहर 

प्रेम में होना मतलब हर वक्त प्रतीक्षा में होना। प्रेयस या प्रेयसी को अपनी कल्पना की आँखो से देखना, महसूसना। प्रतीक्षा की उन घड़ियों में कई बार यूँ ही उसका नाम उच्चारना, पुकारना।

एक सफेद गुलाब स्वप्न देखता है।
स्वप्न में सिहरता है
हरी सुइयों का एक समुद्र।

जबकि तुम ओस भीगी
अपनी त्वचा के तट पर
रहती हो प्रतीक्षारत।

तुम्हारी प्रतीक्षा के समुद्र तट पर खड़े होकर
वक्त को उम्र बनते देखा मैंने
उम्र को याददाशत। 

बहुत सारी ऐन्द्रिय कविताएँ हैं किन्तु कवि रीतिकालिन कवियों की तरह प्रियतमा का नख शिख वर्णन नहीं करता बल्कि यहाँ भाव पक्ष मुखर है।

मेरी भाषा-सी अधूरी मत रहो
तुम्हारा समर्पण जितना सम्पूर्ण एक वाक्य
लिखना है मुझे अपनी अंगुलियों से
तुम्हारी पीठ पर अपनी नदी से कहो
बदले करवट

शताब्दी का पहला शुक्र तारा जोहता है बाट
बनो ज्वार ओ लहर जिस पर
रिझे चंद्रमा तिरे हंस

कितने पुरुषों ने अपनी प्रियतमाओं का मन समझा होगा?
यहाँ कवि समझता है तभी तो अपनी प्रेयसी के लिए लिखता है..

मैं हैरान हूँ,
तुम्हारे मन का गुड़
अब तक किसी ने
चखा नहीं

सुशोभित कई बार चौंका देते हैं। विस्मय से भर देते हैं। कवि और वृतांतकार के रुप में बेबाक हैं। कवि को बॉलिवुड अभिनेत्री दीप्ति नवल का सौन्दर्य मोहता है। वह इस आर्कषण को कविता में पिरो देता है। संग्रह की नौ कविताएँ सिर्फ दीप्ति नवल को संबोधित हैं या कहे समर्पित है। यह ईमानदारी किस कवि में आपको देखने को मिलेगी?
खिलाडियों और फिल्मी सितारों पर फिदा हो जाना नई बात नहीं है। जहाँ लड़कियाँ देवानंद, शम्मी कपूर, धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, हृतिक रौशन की दीवानी होती रही हैं तो अभिनेत्रियों पर मर मिटने की लंबी फेहरिस्त है। सोशल मीडिया ने उनके फैन को प्रेम जताने और करीब आने के कई रास्ते दिखाये हैं। किन्तु इस फेहरिस्त में मधुबाला का सौन्दर्य अद्वितीय था। आज भी उनके अभिनय और सौन्दर्य से लोग बंध जाते हैं। आज भी “जब प्यार किया तो डरना क्या“ टीवी पर आता है तो सब काम छोड़ मंत्रमुग्ध होकर देखने लगते हैं। लाखों लोगों को उनसे प्यार हुआ होगा। उनके सौन्दर्य और अभिनय पर कितने ही पेज रंगे गये होंगे किन्तु किसी ने इतनी बेबाकी से कविताएँ भी लिखी होंगी क्या? नि:संदेह इस लिहाज से दीप्ति नवल भाग्यशाली रहीं।

वह दीप्ति है।

तानपूरे के शीशम वन में बैठी बदन चुराए
गाएगी मालकौंस।

सूने कमरे की दीवार पर
उसकी मुस्कुराहट की खिड़की
वैनगॉग के सूरजमुखी में पीली चाँदनी भरेगी।

देह में लहर की लय लिए
वह चहकेगी, इठलायेगी।
'काली घोड़ी' पर गोरे सैंया संग
जब निकलेगी तो क्या चकित नहीं तकेगी
'सगरी नगरी'।

दीप्ति समानांतर फिल्मों की सफल अभिनेत्री तो रही ही हैं। वह फोटोग्राफी और कविता लिखने का भी शौक पालती हैं। यात्राएँ उनके प्रोफेशन का हिस्सा रही हैं। दीप्ति से संबंधित आठवीं गद्य कविता में ये बातें कवि भी कहता है।

अच्छा सुनो,
मैं ये तो नहीं कहने वाला कि इंतेहा फिदा हूँ तुम्हारी नायाब खूबसूरती, हुस्नो-नज़ाकत पर
या तुम्हारा लड़कपन भी दिलफ़रेब है।

फारुख शेख के साथ दीप्ति नवल की रोंमाटिक जोड़ी  सबसे अधिक सफल रही है। साथ-साथ फिल्म में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह द्वारा गायी गयी गज़लें जो इन जोड़ियों पर फिल्मायी गयी हैं ‘तुमको देखा तो ये ख्याल आया’, ‘ये तेरा घर ये मेरा घर’, ‘प्यार मुझे जो किया तुमने तो क्या पाओगी’, ‘ये बता दे मुझे ज़िन्दगी’ और ‘यूँ ज़िन्दगी की राह में, सुपर हिट रही हैं। फारुख शेख जैसा लड़का हो, दीप्ति नवल–सी लड़की कविता उसी जोड़ी का स्मरण कराती है।
किताब में गुलाब इस संग्रह की सबसे प्यारी कविता है।

हाथ
गुलाब भी हो सकते हैं।

हथेलियाँ
किताब भी हो सकती हैं।

तुम मेरे हाथों को
अपनी हथेलियों में
छुपा लो।

करीब सत्ताइस रेखाचित्र हैं जिन्हें बार-बार पढ़ने को मन करता है। “प्रणय पुरुष का एकालाप है।“ स्वांग है उसका धनुष! जैसी कई रेखाचित्र हैं जो आपके मर्म को छूते हैं।
इन रेखाचित्रों में जो याद रह जाता है उसमें एक है- गोत्रनाम तो भूल गया, किन्तु नाम था गायत्री तथा वह लड़की : जिसने कहा था मुस्कराकर दिखाओ ना!--------
संग्रह पठनीय और संग्रहणीय भी है।
                                                                                                         - महिमाश्री

कविता संग्रह- मैं बनूँगा गुलमोहर (प्रेम कविताएँ व गद्य गीत)
 कवि- सुशोभित सक्तावत
 लोकोदय प्रकाशन
 मूल्य- 150

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