सुशोभित की कविताएँ एक आदिम भित्तिचित्र, एक शास्त्रीय कलाकृति और एक असंभव सिंफनी की मिश्रित आकांक्षा हैं. ये असंभव काग़ज़ों पर लिखी जाती होंगी- जैसे बारिश की बूँद पर शब्द लिख देने की कामना या बिना तारों वाले तानपूरे से आवाज़ पा लेने की उम्मीद. 'जो कुछ है' के भीतर रियाज़ करने की ग़ाफि़ल उम्मीदों के मुख़ालिफ़ ये अपने लिए 'जो नहीं हैं' की प्राप्ति को प्रस्थान करती हैं. पुरानियत इनका सिंगार है और नव्यता अभीष्ट. दो विरोधी तत्व मिलकर बहुधा रचनात्मक आगत का शगुन बनाते हैं. कम लिखने वाले और उस लिखे को भी छुपा ले जाने की आदत वाले सुशोभित सक्तावत हिन्दी में लोर्का के पत्रों का पुस्तकाकार अनुवाद कर चुके हैं. कविता के अलावा दुनिया के संगीत और सिनेमा में गहरी दिलचस्पी रखते हैं.
--गीत चतुर्वेदी
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