Thursday 9 January 2020

एक धरती मेरे अन्दर

पुस्तक समीक्षा
कविता संग्रह/ एक धरती मेरे अंदर/ उमेश पंकज
                                      - जयनारायण प्रसाद

    किसी ने कहा है कि ज्वलंत समय में संवेदनशील, सुंदर और दूसरों से संवाद करतीं कविताएँ लिखना 'शब्दों से मुठभेड़' करने जैसा है। मेरे मित्र और एक जमाने में कोलकाता से 'वृत्तांत' जैसी जनवादी चेतना की उल्लेखनीय साहित्यिक पत्रिका निकालने वाले उमेश पंकज के पहले कविता संग्रह 'एक धरती मेरे अंदर' में शामिल कविताएँ यह बताती हैं कि घोर हताशा और संवादहीनता के इस दौर में भी वे बेहतरीन जिंदगी का सपना देखते हैं। उमेश पंकज की कविताओं को पढ़ना सचमुच 'आज के समय' और 'इस दौर' को जानने जैसा हैं। उनकी एक कविता है- 'उस पार जाना है।' (पृष्ठ 32) इस कविता में उमेश पंकज लिखते हैं-

जीवन की सुखी नदी में
तैरते-तैरते 
थोड़ा थक गया हूँ
करने लगा हूँ-शवासन
भ्रम हो सकता है
बह रही है कोई लाश
मंडरा सकते हैं गिद्ध
मेरे ऊपर 
हमला कर सकते हैं 
सावधान हूँ, लेकिन
बटोर रहा हूँ ऊर्जा
जाना है उस पार
जहाँ खड़े हैं
हरे भरे पेड़
झूमते हुए
बेसब्री से
मेरी प्रतीक्षा करते हुए
    उमेश पंकज के इस संग्रह में कुल 82 कविताएँ हैं, लेकिन सिर्फ दो कविताएँ ऐसी हैं, जो 80-81 के दौर में लिखी गईं। ये कविताएँ हैं- महानगर एक अजगर और बरगद काटने की प्रक्रिया में। बाकी की कविताएँ जनवरी, 2018 से अप्रैल, 2019 के बीच की हैं। कवि का कहना है कि उनके जीवन का अच्छा और बेहतरीन फेज महानगर कोलकाता में बीता, जहाँ उन्होंने न सिर्फ 'वृत्तांत' जैसी उत्कृष्ट मासिक का संपादन किया, बल्कि कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (हिन्दी) की पढ़ाई करते-करते छात्र राजनीति से भी जुड़े रहे। यह सन् 1985 का दौर था- जूझारू, संघर्षशील और कुछ-कुछ उत्कृष्ट भी। इसी दौरान बाबा नागार्जुन के सान्निध्य में अखिल भारतीय स्तर का एक युवा रचना शिविर भी उमेश पंकज ने आयोजित किया, जिसमें देश भर से करीब सवा सौ रचनाकार शामिल हुए।
     उत्तर प्रदेश के बलिया में जन्मे और लखनऊ में बसे उमेश पंकज की कविताएँ हमें सचेत और जागरूक भी करती हैं। उनकी एक और कविता है- 'समय हँसता है।' इस कविता की अंतिम कुछ पंक्तियाँ हैं-

उसे पुकारा, पीछा किया उसका
लेकिन पकड़ नहीं सका
अलबत्ता दमे ने पकड़ लिया मुझे
रोज खांसते हुए हांफता हूँ
और समय हँसता है
हाथ लहराते हुए

    इस कविता में तंज भी है और एहसास-बोध भी ! 'तमीज' शीर्षक उनकी कविता भी 'समय से मुठभेड़' करती दिखती है। जंगल का दर्द, राम खेलावन, राख होने के पहले, अभी जिंदा हूँ, वह तो पूरा पागल है और जादूगर शीर्षक रचनाएँ समय-बोध, टीस और स्याह अंधेरे को अभिव्यक्त और रेखांकित करती कविताएँ हैं। उमेश पंकज का यह कविता संग्रह लखनऊ के लोकोदय प्रकाशन से आया है और इसका आमुख चाक्षुष और पाठकों को आकर्षित करने वाला है।
    कवि त्रिलोचन, नागार्जुन, राजेश जोशी, अरुण कमल और मदन कश्यप जैसे कवियों की कविताएँ उमेश पंकज को ज्यादा भाती हैं। वे कहते हैं- ऐसे कवि की कविता/ रचनाएँ पढ़ने को मिलती हैं, तो सुकून-सा लगता है और एक अजीब-सी ऊर्जा से सराबोर हो जाता हूँ।

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