Thursday 12 March 2020

तुमको भूल नहीं पाएँगे

कथाकार रविशंकर सिंह ने अपनी कहानियों में जिन मुद्दों, चरित्रों को अपना आधार बनाया है, वह अपने आप में अनूठा है। कथाकार ने अखाड़ा कहानी में बाजारवाद के लुभावने झांसी में फंसते हुए लोगों की नियति और उससे उबरने के संकल्प को दिखाया है, तो भविष्य के खतरे के प्रति भी आगाह किया है। "शहर इतने प्रदूषित हो गए हैं कि वहाँ साँस लेना भी मुहाल है। लगता है, कोई साँस लेकर मुँह पर गर्म भाप फेंक रहा हो। वे लोग अपने पूरे परिवार के लिए मिनरल वाटर खरीदते ही हैं। अब तो कई शहरों में एटीएम कार्ड से रोजाना तीस लीटर के हिसाब से पानी मिलता है। यही हाल रहा तो एक दिन वहाँ लोगों को अपनी पीठ पर ऑक्सीजन का सिलेंडर लाद कर चलना पड़ेगा। "(पृष्ठ 13) राजनीतिक षड्यंत्र दूध में खटाई की तरह सांप्रदायिक सौहार्द को किस प्रकार बिगाड़ता है, जोगी साव जैसे सीधे - सादे लोगों को कैसे अपना मोहरा बनाया जाता है और दीपनारायण झा जैसे प्रतिबद्ध लोग कैसे फ्रस्टेशन का शिकार होकर विचलित होते हैं, इस यथार्थ को दंगा कहानी में देखा जा सकता है। तुमको भूल नहीं पाएँगे कहानी में ढहते हुए सामंतवाद, यह भी सच है कहानी में पारिवारिक षड्यंत्र की शिकार विधवा की पीड़ा और धुंध और धुंध कहानी में जीवन में शार्टकट अपनाने वालों की निराशाजनक परिणति को  कथाकार ने भली-भांति उकेरा है। गजराज सिंह, जोगी साव, दामो सिंह की बहू जैसे चरित्रों को गढ़ने वाले कथाकार रविशंकर सिंह से और भी अच्छी कहानियों की हमें उम्मीद है। मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।
                                               - शिवमूर्ति

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