Monday 16 March 2020

सहेली की डायरी... फ्लैशबैक सखी स्मृतियों का

 सहेली की डायरी, एक कहानी संग्रह ही नहीं वरन सहेलियों (स्त्रियों) की अंतर्मन की पीड़ा, भावनाओं का संग्रह है, जो किसी भी कहानी संग्रह में एक स्थान पर नहीं मिलता है। लेखिका गीतिका वेदिका जी ने स्त्री विमर्श के वेदनामयी भावों को एक ही कहानी संग्रह में पिरोकर स्त्री पात्रों के साथ यथोचित न्याय किया है।
   प्रारम्भिक कहानी "शुभ" सम्पूर्ण कहानी संग्रह को स्त्री विमर्श की शुभता प्रदान करता हुआ प्रतीत होता है। ग्रामीण अंचल में लिपटी कहानी "शुभ" की नायिका कहानी के अंत में अर्द्धप्रेम की गति पाती है। कहानी के मध्य रचे गीत पाठक को तल्लीनता प्रदान करते हैं। कहानी "नीलू" की नायिका वैधव्य को प्राप्त होती है तो जीवन के सब रंग फीके हो जाते हैं। समाज की दृष्टि में वैधव्य, वैधव्य नहीं बल्कि उसके लिये अभिशाप बन जाती है। तिस पर उसके गर्भ में पल रहा उजियारा भी बुझ गया है। यही उसके लिये समय मारक बन जाता है। कहानी "वह" गर्भिणी नायिका व उसके निष्ठुर पति की कहानी है। जो पाषाण हृदय की भाँति अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री करता है। "जलदान" कहानी अंतर्मन को झकझोर देने वाली कहानी है। जो पिता भूलोक को त्यागकर भी अपने बालक के पास रहकर अपने कार्य और संवाद करते हैं। पुत्रवधु के जलदान से तृप्त होकर ही अपने लोक को जाते हैं। ऐसी कहानी बहुत ही कम पढ़ने को मिलती है, जो पाठक के सामने एक चित्र सा खींच देती हो। भाई बहन की कहानी "विदाई" भी विवाह पश्चात ससुराल जाती बहन का दृश्य उपस्थित कर देती है। "गिरहें" कहानी आम स्त्री के जीवन में आने वाली कठिनाइयों और ससुरालीजन साथ पति की ओर से भी उपेक्षा की शिकार स्त्री की कहानी है। सार रूप में कहने का आशय यह है कि इस संग्रह में स्त्री के समस्त जीवन क्षण देखने को मिलते हैं। जैसे रूप लावण्य की प्रशंसा, ग्रामीण परिवेश में पला अनकहा प्रेम, तीन पग में विरही से मिलन की साक्षी होना, जीवन में शंकित भय, समाज में चल रही प्रेम विवाह की बानगी, एक पत्र में अपने अविवाहित  जीवन की तमाम दिक्कतों तथा संग्रह के अंत में आम स्त्री के जीवन में पारिवारिक उलझनें देखने को मिलती है।
इस कहानी संग्रह में देशकाल के अनुसार भाषा शैली यथाउचित सम्मान प्राप्त करती है। संग्रह की अहम विशेषता यह भी है कि इसमें पात्रों का अनावश्यक जमाबड़ा नहीं है और न ही कथोपकथन की अधिकता। इस संग्रह में कलापक्ष तो अपना स्थान रखता ही है, उससे अधिक भावपक्ष पाठक को पठन से बाँधे रखता है। यदि इसमें किन्नर विमर्श, दहेज प्रथा, एसिड अटैक से पीड़ित स्त्री आदि की कहानी सम्मिलित होती तो यह संग्रह पूर्णरूपेण संपूर्णता को प्राप्त होता।
शेष शुभ!
आशीष कुलश्रेष्ठ, लखनऊ

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